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________________ अधर्मे स्थितिहेतुत्वं गुणो ज्ञान गुणोऽसुमान् ॥ ततो धर्मास्तिकायान्यमात्मद्रव्यं जगुर्जिनाः ॥५०॥ . अर्थः-धर्मास्तिकायनो गुण गतिहेतु छे अने आत्मानो गुण ज्ञान छे, माटे धर्मास्तिकायथी आत्मा जुदो छे एम प्रभु कहे छे ॥ ४९ ॥ अधर्मास्तिकायनो गुण स्थितिहेतु छे अने आत्मानो ज्ञान गुण छे, माटे अधर्मास्तिकायथी आत्मद्रव्य जुएं छे एम प्रभु कहे छे ॥ ५० ॥ अवगाहो गुणो व्योम्नो ज्ञानं खल्वात्मनो गुणः॥ व्योमास्तिकायात्तद्भिन्नमात्मद्रव्यं जगुर्जिनाः ॥५१ आत्मज्ञानगुणः सिद्धः समयो वर्त्तनागुणः ।। तद्भिन्नं समयद्रव्यादात्मद्रव्यं जगुर्जिनाः ॥५२॥ अर्थ:--आकाशनो गुण अवगाह छे, अने आत्मानो गुण ज्ञान छे, माटे आकाशास्तिकाय श्री आत्मद्रव्य जुदुं छे एम प्रभु कहे छे ।। ५१ ॥ आत्मा ज्ञान गुणे सिद्ध छे, काल वर्तमारूप छे, माटे कालथी आत्मद्रव्य जुदुं छे, एम प्रभु कहे छे ।। ५२ ॥ आत्मनस्तदजीवेभ्यो विभिन्नत्वं व्यवस्थितं ॥ व्यक्तिभेदेनयादेशादजीवत्वमपीष्यते ॥५३ ॥ अजीवा जन्मिनः शुद्धभावप्राणव्यपेक्षया ॥ सिद्धाश्च निर्मलज्ञाना द्रव्यप्राणव्यपेक्षया ॥५४॥ ____अर्थ:-ए प्रमाणे अजीवथी आत्मानुं जुदापणुं सत्य ठयु, पण भेदे करी देशथकी अजीवपणुं पण वंछीए छीए ॥ ५३ ॥ जेम निर्मल ज्ञानवंत सिद्धने द्रव्यप्राणनी अपेक्षा रहितपणे अजीवपणुं कहिये, तेम शुद्ध भावप्राणनी अपेक्षा रहित जीवने अजीव कहिये छीए ॥ ५४॥
SR No.023433
Book TitleAdhyatmasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Veervijay
PublisherAdhyatmagyan Prasarak Mandal
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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