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________________ नो चेदित्थं भवेबुद्धिगोहिंसादेरपिं स्फुटा॥ श्येनाद्वा वेदविहिताद्विशेषानुपलक्षणात् ॥ ३० ॥ अर्थ:-तो तेवा कर्मयोगे पण फल नथी. फल तो संकल्प वर्जे तेवारेज थाय छे. आत्मज्ञान विना त्याग पण नथी, अने एनुं स्वरूप सावध छे, माटे ब्रह्म जे ज्ञान तेना बोधथकी फल प्रगटे ॥ २९ ॥ जो कदापि एम बुद्धि न होय तेवारे तो गोहिंसादिकथकी म्लेच्छादिकने पण प्रगट शुद्धि होय, तथा सिंचाणाना वधथी वेदमां पशुयाग कह्या, ते थकी हिंसक कर्मना योगे वेदीयानां अने म्लेच्छनां एक सरखां ज लक्षण छे काई विशेष नथी ।। ३० ॥ सावद्यकर्म नो तस्मादादेयं बुद्धिविप्लवात् ।। कर्मोदयागते तस्मिन्नसंकल्पादबंधनं ॥ ३१ ॥ कर्माप्याचारतो ज्ञातुर्मुक्तिभावो न हीयते ॥ तत्र संकल्पजो बंधो गीयते यत्परैरपि ॥ ३२ ॥ अर्थः-एटला माटे बुद्धिना विपर्यासपणाथी सावद्यकर्म आदरयु नही, अने जो दैवयोगे तेवा कर्म करवानुं उदय आव्यु तेवारे ते कर्म करवानो जो संकल्प नथी, तो ते कर्मनुं बंधन पण नथी ॥३१॥ सांसारिक क्रियानो जो आचार छे, तोपण ज्ञानीने मुक्तिभावनी हाण नथी, केमके संकल्पथी बंधन छे, एवं अन्य दर्शनवालानुं पण कहे, छे, ते जुओ आगल कहे छे ॥ ३२ ॥ कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः॥ __ स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृतकर्मकृत् ॥३३॥ कर्मण्यकर्म वाकर्म कर्मण्यस्मिन्नुभे अपि ॥ नोभे वा भंगवैचित्र्यादकर्मण्यपि नो मते ॥३४॥
SR No.023433
Book TitleAdhyatmasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Veervijay
PublisherAdhyatmagyan Prasarak Mandal
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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