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________________ कदाग्रहत्यागाधिकारमिथ्यात्वदावानलनी खाहम सदगृहत्यागमुदाहरंति ॥ अतो रतिस्तत्र बुधैर्विधेया, विशुद्धभावैः श्रुतसारवद्भिः॥१॥ अर्थ:-मिथ्यात्वरूप जे दावानल तेने शमाववाने मेघ समान एवा मिथ्यात्व कदाग्रहरूप प्रसारनो त्याग पंडिते कह्यो छे. जे कदाग्रहना त्यागने विषे रति करवी ते तो जे पंडित होय, वली शुद्ध भाववालो होय अने सिद्धांतना सारनो जाण होय तेणे कदाग्रहने छांडवो ॥१॥ असद ग्रहामिज्वलितं यदंतः, क तत्र तत्त्वव्यवसायवल्लिः ॥ प्रशांतिपुष्पाणि हितोपदेश फलानि चान्यत्र गवेषयंतु ॥२॥ अर्थ:-जेनुं अंतःकरण अछता पदार्थना कदाग्रहरूप अग्निये बल्युं छे तेना हृदयमां तत्त्व-व्यापाररूप वेली केम करी ऊगे ? अने समतारूप फूल केम फूटे ? तथा हित उपदेशरूप फल क्याथी होय ? ते माटे कदाग्रहने तजीने बीजे ठेकाणे तत्वनी खोज करवी ॥२॥ अधीत्य किंचिच्च निशम्य किंचिद सद्ग्रहात्पंडितमानिनो ये॥ मुखं सुखं चुंबितमस्तु वाचो, लीलारहस्यं तु न तैर्जगाहे ॥ ३ ॥
SR No.023433
Book TitleAdhyatmasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Veervijay
PublisherAdhyatmagyan Prasarak Mandal
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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