SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ statuttartstatutetstetoot.totatut.totatutetstatutetstatute tot.totta प्रस्तावना. tetetetetet tetetatatatatatatatatatatatetetsbetatatatatatatat ketetettelittleteiltintanitetsk सुज्ञवाचक! जन्म जरा मरण रूप जलवडे परिपूर्ण,सर्व जगत्ने गली जवामां समर्थ एवा लोभरूप वडवानले करीनेयुक्त, विषयरूप तरंगोए करीने चपल एवा संसारसमुद्रने विषे अनादि कालथी परिभ्रमण करता भव्यात्माओने संसारना दुःखथी मुक्त थवाने माटे तीर्थकरोए सद्देव गुरू धर्म रूप तच्चोनुं आराधन करवानुं कहेलं छे, अढार दक्षण रहित अने बार गुणे करीने युक्त एवा अ रिहंत ते देव, पंचाचारना परिपालक ते गुरु अने केवलीकथित ते * धर्म ए त्रणे तत्त्वो प्रत्ये परिपूर्ण श्रद्धा ते सम्यक्त्व, ए सम्यक्त्व ज मोक्षनुं असाधारण कारण छे के जेना विना ज्ञान अने चारित्र पण यथोक्त फल आपी शकता नथी ए त्रणे तच्चोनी अंदर गुरूतस्व मुख्य छ ? केम के जीवोने देवतव अने गुरुतत्वन स्वरूप ब.. तावनार गुरु महाराज होय छे,श्रीपाल चरित्रमा पण कहलं छे के कारणं देवधर्माणां तत्त्वे भवति सद्गुरुः। स गुरुनिन्दितो येन त्रयस्तेनावधूनिताः ॥ १॥ ___ भावार्थ:- देवतश्व अने धर्मतत्वनी प्राप्तिमा उत्तम गुरु महाराज कारणभूत छे केमके तेमना उपदेश विना ए तच्चोनुं यथार्थ ज्ञान थइ शकतु नथी, माटे जे गुरु महाराजनी निंदा करे तेणे त्रणे तत्त्वोनु अपमान कर्यु: समजवू, मुनिसुन्दरसूरीश्वरजी महाराज पण ए वातने पुष्टि आपता अध्यात्मकल्पद्रुममा लखे छे केतत्त्वेषु सर्वेषु गुरुः प्रधानं हितार्थधर्मा हि तदुक्तिसाध्याः श्रयंस्तमेवेत्यपरीक्ष्य मूढ ? धर्मप्रयासान् कुरुषे वृथैव ॥१॥ भावार्थ:- सर्व तत्वोने विषे गुरुतत्व मुख्य छ, केमके आ TRA Mt.t.t.tt.tu.tutetatutatutetxexeetuRetukkutxxxtakutextxxxtuzuktre tatatatatatatatatatatatatateretetetetutatatatatatattv
SR No.023430
Book TitleGurutattva Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvihit Purvacharya
PublisherSatyavijay Smarak Jain Granthmala
Publication Year1928
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy