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________________ H etetatatat setore teretetste treteteritestatatertretertoretretettertretertretestetectetstestertentesterte थी जे रहित थया होयते स्नातक तेमां बकुश अने कुशील तो सर्व तीर्थकरोना तीर्थपर्यंत वर्तता होय छे, तेमां पंचमहावत रूप मूलगुण अने दशविध प्रत्याख्यानरूप उत्तरगुण एटले मूलगुण अने, उत्तरगुणविषयक चारित्रनी विराधना पुलाकने विषे होय छे, आचारनी विरुद्ध प्रवृत्ति करवी ते प्रतिसेवना ए प्रतिसेवना कु. शीलने विषे होय छे, उत्तर गुणविषयक विराधना बकुशनेविषे होयछ, बाकीना निम्रन्थ अने स्नातक तो प्रतिसेवना रहित होय छे, बकुशनां वे भेद छे उपकरणवकुश अने शरीरबकुश तेमा जे उपकरणवकुश होय ते शेषकालमां पण वस्त्रो धोवे अने विभूषा माटे गरीक वस्त्रो वापरे, तथा खरपाषाणथो घसेला सुंबाला पत्थरथी घसीने सुकोमल करेला अने बेलतेल लगाडीने तेजस्वी बनावेला पात्र अने दांडा विगेरे शोभाने माटे धारण करे घणा उ. पकरणोनो संग्रह करे ते उपकरणबकुश, अने जे शरीरबकुश होय ते अशुचि नेत्रविकारादि कारण विना हाथ-पग-नखमुखादि शरीरना अवयवोने साफ करे, पांडित्यतपादि करीने यश नी इच्छा राखे यश थए छते संतोष पामे, सुखशील थयेलो अहोरात्रि धर्मानुष्ठानने विषे उद्यम न करे, तैलादिवडे पगे मर्दन करे. वाल कापे, तेनो परिवार पण असंयमान् अने वस्त्र पात्रादिने विषे ममत्वभाववालो होय हे ते शरीरब श कहेवाय. उपकरणबकुश अने शरीरवकुश ते बन्नेनां पांच पांच भेदो - आ कार्य साधुने करा योग्य नथी एम जाणता छतां जो करे तो ते आभोगवकुश १ अजाण पणे करे तो ते अनाभोग बकुश२ लोकोना जाणवामां न आवे एवी रीते उत्तर गुणने विषे * अतिचारचं सेवन करै ते संतबकुश ३ प्रकटपणे अतिचार** ***** * etat tetettet 'etetatatatatatatatatatatatatatatetetztetetett intetrtetetatettatettatetet intatietectietetytetatatatatietoets te tretetetrtrtrtrtrteetati*$$*trtrtfat-tre tots trete tuto Ixto Intertot.**
SR No.023430
Book TitleGurutattva Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvihit Purvacharya
PublisherSatyavijay Smarak Jain Granthmala
Publication Year1928
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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