SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Netrt.krt.titatutetatutetat... Metatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatatata Metatestete teetesteteetateetesteter tracteetateeteetateste toate tentatetor tertestente de tot 1 मित्त-वैदक-मंत्रादिना प्रयोगो करे, मुविहित साधुओ प्रत्ये द्वेष ३ राखे, तेमनी पासे धर्मकार्य करवानो निषेध करे, शासननी प्रभा वना ने माटे बीजाना दोषो प्रगट करे, लोभने माटे गृहस्थनी ३ स्तुति करे, जिनप्रतिमानो क्रय-विक्रय-उच्चाटन-आदि क्षुद्र कार्यों करे, सर्व लोकोने राजी राखवाने माटे मुहूर्त विगेरे आपे, शालामां अथवा गृहस्थने घेर यज्ञो विगेरे करावे, सांसारिक फलने माटे यक्षादि देवोनी पूजा करवानुं कहीने मिथ्यात्वनी वृद्धि करे इत्यादि सर्व पासत्थाना लक्षणो जाणना, वर्तमानकाळना सर्व ई साधुओ आवा लक्षणवाळा नथी, केमके केटलाक साधुओ तो वर्त* मानकाले पण सर्वशक्तिए करीने चारित्रने विष उद्यमवंत देखा य छे, माटे सर्वथी पासत्था कही शकाशे नही,डवे देशथी जो पासत्या कहेता हो तो तेनुं लक्षण बताओ, त्यारे प्रतिवादी कहे छे केजे साधुभो विना कारणे शय्यातरपिंड-सामो लावेलो आहार, राज पिंड-नित्यपिंड-अग्रपिंड वापरे, कुलनी निश्राए विचरे, कारण सिवाय स्थापनाकुलोमां प्रवेश करे, संखडी (जमणवार)मां जोवा जाय तेमज स्तुति करे, तेने देशथी पासत्थो जाणवो, ए प्रमाणे है आवश्यक नियुक्तिमां कां छे, त्यां शास्त्रकार कहे छे के1 उपरोक्त सर्व लक्षणो जेनामां घटता होय, तेने तमे देशथी पास. है त्यो कहो छो, के भिन्न भिन्न लक्षणवाळाने ? भिन्न भिन्न लक्षण वाळाने तो देशथी पासत्थो कहीशकासे नही केमके- स्थूलिभद्रमहाराज कोशाने घेर चतुर्मास रया अने त्यां चारे मास सुधी तेना घरनो आहार लीधो जेथी शय्यातरपिंडनो दोष लाग्यो के तोपण * शास्त्रकारे तेमने देशपासत्था कह्या नथी. * जेने माटे आवश्यक सूत्रनी म्होटी टीकामां योगसंग्रहने विषे का छ-"थूलभद्दसामी तत्थेव गणिआपरे भिक्खं गेण्हई" * RAPE etetetreteresteet:totrete teretetetrtrtrtrete tretete te te tretetetrtrtetetoetuste tretettelse
SR No.023430
Book TitleGurutattva Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvihit Purvacharya
PublisherSatyavijay Smarak Jain Granthmala
Publication Year1928
Total Pages82
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy