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________________ ( ८४ ) तबिन्दु :: २४४ अवग्रहादि एकेक शब्दयी मतिज्ञानना सर्व प्रकारनुं ग्रहण थाय - छे. सर्वनुं ग्रहण करे ते अवग्रह. एम व्युत्पत्तिथी मतिज्ञानना ईहा, अपाय, धारणारूप भेदोनुं ग्रहण थयुं, चेहालक्षणरूप मां मतिज्ञाना सर्व भेदो समाय छे. अवगमनरूप अपायमां सर्व भेदोनो अन्तःपात थाय छे. धरणलक्षण धारणाथी सर्व भेदोनुं ग्रहण थाय छे. अपेक्षाए आ व्याख्या समजवी. २४५ अवग्रहादि लक्षणनो अर्थ विशेष मात्र अंगीकार करी अवग्रहादि शब्दो भिन्न वर्त छे. २४६ चतुर्गतिमां मतिज्ञान पूर्वप्रतिपन्न नियमथी होयछे प्रतिपद्य - मानकनी भजना विवक्षितकाले कदापि होयछे. प्रतिपद्यमानक नथी होता. २४७ आभिनिबोधिक प्रतिपत्ति प्रथम समयमां प्रतिपद्यमानक कहेवायछे, अने द्वितीयादि समयोमां पूर्वप्रतिपन्न ए प्रमाणे आ बेनो विशेषछे.
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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