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________________ vvvvvv wwwww तत्वविन्दुः (५५) णयो, एवं दंड-१ कपाट २ प्रतरमन्थान ३ लोक पूर्ण एम चार समय.पर्यंत क्रियाकरे-पांचमे समये लोक पूर्ण संवरेछठे समये प्रतरमन्थान संवरे, सातमे समये कपाट संवरे, आठमे समये दण्ड संवरे, आयुकर्म समान नाम, गोत्र, वेदनीय करीने पश्चात् केवलिसमुद्घात क्रियाछेडे आपणा शरीरप्रमाण प्रदेशना विस्तार राखे. १८५-योगीश्वरने ध्यान, तपश्चर्याथी आठ प्रकारनी ऋद्धि प्राप्त थाय छे १ बुद्धिरुद्धि-२ क्रियारुद्धि, ३ विक्रियारुद्धि ४ तपोऋदि ५ वलऋद्धि ६ औषधऋद्धि ७ रसऋद्धि ८ क्षेत्रऋद्धि प्रथम बुद्धिऋद्धि-बुद्धि कहेतां ज्ञान जाणवू-तेना अष्टादन भेद जाणवा. १केवल-२ अवधि. ३ मनः पर्यव. ४ बीजबुद्धि. ५ कोष्ठबुदि ६ पादानुबुद्धि. ७ संमिनीतबुद्धि ८ दुरास्वादमबुद्धि ९ स्पर्शबुदि १० दर्शनबुद्धि ११ घाणबुद्धि १२ श्रवण समर्थताबुद्धि १३ दशपूर्वबुद्धि १४ चतुर्दशपूर्वबुदि १५ • अष्टांगमहानिमितबुद्धि १६ प्रज्ञाश्रवण बुद्धि १७ प्रत्येकबुद्धि १८ वादित्वबुद्धि केवल ज्ञान अने अवधिनुं स्वरूप स्पष्टछे. मनापर्यव पण स्पष्टछे. सुक्षेत्र समारेलामां कालानुयोगे ज्यारे दृष्टि थाय
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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