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________________ तत्वबिन्दुः ( २३ ) आचरतो छतो द्रव्यकर्मरोग टाळे. तथा त्रीजी चरित्रानुवाद देशनाथी शरीर संबंधी कामभोग विषय तथा कषायथी निवर्ते, जेम जंबू खामी प्रमुख मुनिराजोना चरित्र श्रवणथी वैराग्यगुण प्रगटे अने तेथी नोकर्मनो रोग मिटे. ८५ धर्मश्रवण तथा धर्मसूत्राभ्यास उद्यमनीरूचि सम्वत् दर्शनगुणनी प्राप्ति करावे. तथा तत्वातस्त्वगवेषणाबुद्धिथी सम्यग्ज्ञानगुणनी प्राप्ति थाय, तथा पंचेंद्रियना विषय तथा चार कषाय तथा पंच प्रमादनो जे त्याग तेथी चारित्रगुण प्रगटेछे. तथा आत्मस्वरूपमां लीनता तथा एक स्थिरता तथा ध्यानथी वीर्यगुण प्रगटेछे. एम चारगुण हेतु धारवा. हवे एनां शरीरमां स्थानक कहेछे. दर्शन चक्षु मध्ये. ज्ञानते हृदयमां, तथा चारित्रते चरणे, तथा वीर्यगुण उत्साहविषे होय, एम चार गुणनां स्थानक समजवां 1 ८६ स्वरूपहिंसा, अनुबंध हिंसा, द्रव्यहिंसा, भावहिंसा, तथा योगहिंसा, आदिहिंसाना घणा भेदछे स्वरूपहिंसाते साधुने नदी उतरतां होयछे. जिनाज्ञाथी त्यां दोष नथी. नदी उतरतां अयतनाना सद्भावथी इरियाबहिया आलोवे, तथा सम्यग्दृष्टिने देवपूजा गुरुवन्दना तथा आहार होरावतां इत्यादि कार्ये स्वरूप हिंसा जाणवी. पण तेथी अल्पबंध अने घणी निर्जरा थायछे माठे स्वरूप हिंसा
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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