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________________ (48) तत्वबिन्दुः अभिहिया आदि दशपदे गुणवा. तेने राग अने द्वेषे गुणवा. तेने मनः वचन अने कायाना योगथी त्रणगुणा करवा. - पुनः कर कraj अने अनुमोदनुं एम त्रणे गुणीए पुनः अतीत अनागत अने वर्तमान एत्रणभेदे गुणी पुनः अरिहंतादिक छए गुणीए तो १८२४१२० भेद थाय. ६० धर्मक्षमा चतुर्थगुण स्थानकथी प्रगटेछे. क्षमा ऋण प्रकारनीछे. १ धर्मक्षमा २ उपकारक्षमा ३ अपकारक्षमा. ६१ उत्पातिकी बुद्धि, वैनयिकी बुद्धि, त्रीजीकार्मणकीबुद्धि, चोथी पारिणामिकी बुद्धि जाणवी. ६२ प्रत्याख्यान, कायोत्सर्ग, प्रतिक्रमण, ए त्रण आवश्यक उपर प्रीति जाणवी. चतुर्विंशतिस्तव, सामायक, अने गुरुवंदन ए त्रण आवश्यकपर भक्ति जाणवी. ६३ मतिज्ञान अने श्रुतज्ञान पश्चात् अवधिज्ञान तथा मनः पर्यवज्ञान .. थयाविना केवलज्ञान उपजे. मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अने अवधिज्ञान पश्चात् मनःपर्यायज्ञान थया विना पण केवलज्ञान होय. मति
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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