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________________ ६२५ बिन्दु. ( 149 ) गाथा, अणुगामिय आही, नेरइयाणं तहेवदेवाणं ॥ अणुगामि अणणुगामी, मीसोय मणुस्स तेरिथ्ये ॥ अनुगामि अवधिज्ञान, नारको अने देवोने होयछे अनुगामी अनुगामी अने मिश्र ए त्रण प्रकारनुं अवधिज्ञानछे ते मनुष्यो अने तिर्योछे, जघन्यथी अवधिज्ञाननो उपयोग एक समयनो जाणवो गाथा. ६२६ खित्तस्स अवठाणं, तेत्तीसं सागरा कालेणं; दव्वे भिन्नमुहुतो, पज्जवलभेय सत्ता ॥ १ ॥ अनुत्तरदेवो जे क्षेत्रमां जन्म समये रहेछे त्यांज भवक्षय पर्यंत रहेछे तेथी अवधि संबंधि एकत्र क्षेत्रणं तेत्रीस सागरोपम सुधी अवस्थानछे उपयोगयी अवधिज्ञाननुं द्रव्यक्षेत्र आश्री भिन्न मुहूर्त अवस्थानछे भिन्नमुहूर्तमेवावस्थानं नपरतः सामर्थ्या भावात् तत्रैव द्रव्येयेपर्यवा: पर्यायधर्मास्तल्लाभे पर्यायात् पर्यायांतरंच संचरतो अवधेस्तदुपयोगे सप्ताष्टौवा समयानु अवस्थानं न परतः ॥ ते द्रव्यमां जे पर्यायछे तेना लाभमां पर्यायथी पर्यायांतरमां जनार अवधिना उपयोगमां सात, आठ समयपर्यंत अवस्थान होय. ते उपर नहीं. केटलाक तो कहेछे के पर्याय वे प्रकारेछे. गुण अने पर्याय. तत्रसहवर्ति गुणछे. शुक्लादि अने क्रवर्ति पर्यायोछे. नव पुराणादि. तेमां गुणोमां आठ समयपर्यंत, अवधिज्ञानना उपयोगनुं अवस्थानछे. अ पर्याय मां सात समय पर्यंत अवधिज्ञानना उपयोगनुं अवस्थान
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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