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________________ तत्वविन्दु. (१९) ५६३ अवधिज्ञानी, कालथी जघन्य आवलिकाना असंख्येय भागयी आरंभी समयोत्तर वृद्धिवडे उत्कृष्टथी असंख्य उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल जाणे. (वि. पत्र १७८ ) ५६४ अवधिज्ञानी ज्यारे ज्यारे उपयोग मूके त्यारे अन्तमुहूर्त पर्यंत, रहे अने लब्धिनी अपेक्षाए अवधिनो उत्कृष्ट छासठ सागरोंपम काल अधिक जाणवो. ५६५ अवधिज्ञानी क्षेत्र आश्री अने काल विशिष्ट रूपी द्रव्यने जाणे छे. पण अरूपि एवा क्षेत्र अने कालने अवधिज्ञानी, जाणी शकतो नथी. कारणके क्षेत्र अने काल अरूपीछे. अवधिज्ञाननो .: तो रूपि 'द्रव्य जाणवानो विषयछे. (वि. पत्र १७९ ) ".. ५६६ विग्रहगतिमां आवता भवतुं आयुष्य, उदयमां होयछे. एम समजायछे. ५६७ बकुश, पुलाक अने प्रतिसेवना कुशील छठा, सातमा गुणठाणा सुधी होय. कषायकुशील दशमागुणठाणा सुधी होय, निम्रय अगियारमा, बारमागुणस्थानक पर्यंत होय. तेरमा, चौदमा
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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