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________________ ( १६० ) तत्वविदुः ५२६ भवचक्रमां चार बार आहारकशरीर करनार मुनि तद्भवमां सिद्धिगामीछे. ५२७ आचारांगसूत्र वृत्ति तृतीयाध्ययन, प्रथम उद्देशामां स्त्यानधिंत्रिकोंदय थएछते सम्यक्त्व प्राप्ति अने भवसिद्धि कोइनी : थती नथी. ५२८ एक भवमां, एक जीवने, कर्मगतिवैचित्र्यताथी त्रणवेदनो उदय पण संपजेछे निशीथचूर्णि ५२९ कोइ पण निर्भाग्यना संसर्गथी घणा भाग्यवंतोनो पण पुण्योदय हणायछे. ५३० द्रव्यथी परमाणु नित्यछे. पर्यायथी अनित्यछे. भगवती सूत्र १४ शतक - चोथा उद्देशामां कछे के - परमाणु पुग्गलेणं भंते सासर असासए ? गोयमा! सियसासए, सिअअसासए, सेकेण ठेणं भंते एवं बुच्चति ? गोयमा!!! दव्वटयाए सासए, पज्जवठयाए असास, इत्यादि यत्तु केचित् परमाणोर्नित्यत्वेनतत्पर्यवाणां नित्यत्वंमन्यते तदसत्. पंचमांगे स्पष्टतोऽनित्यत्वोक्ते:, केटलाक परमाणुना नित्यपणावडे तेना पर्यायोने पण नित्य
SR No.023422
Book TitleTattvabindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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