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राजविदुः
उत्कृष्टतः नव योजनथी आवेला गंध, उस अने स्पर्शने ग्रहण करे छे, चक्षुरिन्द्रियनो लक्ष योजननो विषय छे. चक्षु इन्द्रियमां पदार्थ भावीने पड़ता नथी.
स्पर्शेन्द्रिय, रसेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, अने श्रीतेन्द्रिय जघन्ययी अंगुलना असंख्यातमा भागथी आवेला स्पर्श, रस, गंध, शब्द - लोने ग्रहण करेछे. चक्षु जघन्यथी अंगुलना संख्यातमा भागम रहेला पदार्थने विषयभूत करेछे.
२७८ मननुं क्षेत्र की विषय प्रमाण नथी.
२७९ संज्ञाक्षर अने व्यंजनाक्षर एवे भावश्रुत कारण होवाथी द्रव्य श्रुतछे, लब्ध्यक्षर ते भावश्रुत जाणवुं.
२८० अर्थावग्रह, इहा, अपाय अने धारणा, प्रत्येकने पांच इन्द्रियो अने छठ्ठा मनथी गुणतां चोवीस भेद थाय अने मां औत्पातिकी आदि चार बुद्धिना भेद उमेरी कोइ मतिज्ञाऩना अठावीस भेद माने छे. पण ते शास्त्र सम्मत नयी, "व्यंजनाचग्रहना चार भेद अने अर्थावग्रहादिना चोवीस भेद मळी मतिज्ञानना २८ अठावीश भेद शास्त्रकारे गण्या छे. अने औल्याविकी आदि चार मकारनी बुद्धि भिन्न ममीले