SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (ख) पद्धति ने प्रभाव डाला। ईसाईयों के आगमन के बाद पाश्चात्य पद्धति का प्रभाव भारतीय पद्धति पर पड़ा। अपने विकास के इन विभिन्न स्तरों से गुजरते समय गणना-पद्धति का सम्बन्ध नक्षत्रों तथा चन्द्र व सूर्य की गणनाओं से रहा। आर्यभट्ट, वाराहमिहिर, भास्कराचार्य, गणेश, देवज्ञ आदि बड़े-बड़े ज्योतिषी व खगोलशास्त्री हुए । ज्योतिष के अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की गई, लेकिन इन ज्योतिषियों अथवा खगोलशास्त्रियों में से किसी ने भी किसी सम्वत् की स्थापना नहीं की, अपने नाम से अथवा कि पी खगोलशास्त्रीय घटना से कोई नया सम्वत प्रारम्भ नहीं किया। सम्वतों का आरम्भ राजाओं द्वारा किया गया। यह आवश्यक नहीं कि सम्वत् आरम्भ करने वाले इन राजाओं को गणना-पद्धति का बहत सक्ष्मता से ज्ञान था वरन ये लोक प्रसिद्ध थे और इनके जीवन की घटनायें इतनी महत्वपूर्ण थी कि सदियों तक उनकी स्मति लोगों में बनी रही तथा ये प्रसिद्ध राजा व व्यक्तित्व सम्वतों के आरम्भकर्ता रहे व महत्त्वपूर्ण घटनायें संवतों के आरम्भ के लिए उत्तरदायी रहीं। पंचांग का तात्पर्य पांच अंगों वाले से है । तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा कर्ण पंचांग के पांच अंग हैं । पंचांग गणना-पद्धति का वह रूप है, जिसमें इसको सर्वसाधारण के दैनिक व्यवहार के लिए सरल रूप में प्रस्तुत किया जाता है । साधारण व्यक्ति के लिए खगोल व ज्योतिष के पूरे सिद्धान्तों को समझना व उनके आधार पर तिथि, माह व वर्ष के स्वरूप को निर्धारित करना सम्भव नहीं है । अतः दैनिक व्यवहार के लिए गणना की सबसे छोटी इकाई से एक वर्ष तक की इकाइयों, मुख्य त्योहारों, मुहूर्तों, उत्सवों, मौसम, व्यापार, कृषि या उद्योगों से संबंधित भविष्यवाणियों को एक पत्र या पत्रिका के रूप में छापा जाता है। यह पंचांग कहलाता है। पंचांग अधिकतर वार्षिक बनते हैं। कभी-कभी पंच. वर्षीय, दसवर्षीय अथवा पूरी शताब्दी के लिए भी पंचांग बना लिया जाता है। एक पंर्चाग कई संवतों का सम्मिलित पचांग भी हो सकता है या एक ही गणना पद्धति से बने पंचांग पर अनेक संवतों के चाल वर्षों को भी लिख दिया जाता है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध पांच अध्यायों में विभाजित हैं : प्रथम अध्याय में काल गणना का संक्षिप्त इतिहास, इकाइयां व विभिन्न चक्र यहां दिए गए हैं, इसमें विश्व में पंचांग व काल गणना के विकास का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए भारतीय गणना-पद्धति के इतिहास व उस पर विदेशी प्रभाव का वर्णन किया गया है। भारतीय काल-गणना में क्या अपना है व किन तत्त्वों पर विदेशी प्रभाव है इस
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy