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________________ काल गणना का संक्षिप्त इतिहास, इकाईयाँ व विभिन्न चक्र गया तथा उन्हें अधिक वैज्ञानिक बनाया गया । इस वर्ग में गोरख प्रसाद, शंकर बाल कृष्ण, थीबो, कालब्रुक, व गोरखनाथ बनर्जी के मतों को रखा जा सकता इस समस्त विवेचन से ऐसा जान पड़ता है कि विश्व के विभिन्न स्थानों पर ज्योतिष का विकास स्वतन्त्र रूप से हआ तथा ग्रहों व नक्षत्रों का निरन्तर लम्बे समय तक एक ही साथ वेध करते रहने से अलग-अलग स्थानों पर विकसित हुए इस शास्त्र के अनेक मूल तत्व एक जैसे ही विकसित हुए और बाद में आवागमन के विकास के साथ इन विभिन्न स्थानों में जन्मी ज्योतिष की एक दूसरे से तुलना कर लोगों ने अपनी-अपनी गलतियों को सुधारने का प्रयास किया तथा संस्कृति के अनेक तत्वों की भांति ज्योतिष के नियमों का भी आदान-प्रदान हुआ। इस स्थिति में भारतीय ज्योतिष को पूर्ण रूप से विदेशों से उधार ली मान लेना अथवा विशुद्ध भारतीय ही कहना उचित नहीं है। इस सम्बन्ध में हमें मध्यम मार्ग ही अपनाना चाहिए और यह समझना चाहिए कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र मूल रूप में भारत में ही जन्मा, वेधों द्वारा इसके सिद्धान्तों का निर्माण किया गया तथा बाद में इन नियमों को और अधिक दृढ़ करने के लिए हमारे ज्योतिषियों ने विदेशी ज्योतिष का अध्ययन कर कुछ सुधार भी किये हैं। विश्व में कब और कहां ज्योतिष का आरम्भ हुआ यह निश्चित कर पाना कठिन है । लेकिन भारतीय साहित्य में वैदिक काल से ही ज्योतिष के सिद्धान्तों और उनके प्रयोग की विधि का उल्लेख मिलता है । अतः यह कहना कि भारत ने नक्षत्र क्रम अथवा शशी चक्र जैसे ज्योतिष के महत्त्वपूर्ण तत्त्वों को ग्रीस से ग्रहण किया न्यायोचित नहीं है। भारत में नक्षत्रीय गणना का विकास काफी पहले हो चुका था । बृहस्पति चक्र, परशुराम चक्र व कलियुग सम्वत् इसके स्पष्ट प्रमाण है। हम यह तो नहीं कह सकते कि जहां से इन गणना पद्धतियों का आरम्भ माना जाता है उसी समय से ये गणनायें आरम्भ हुई। परन्तु इतना अबश्य है कि ईसा से शताब्दियों पूर्व से इनका प्रयोग हो रहा था । कलियुग सम्वत् की गणना पद्धति, उसकी वैज्ञानिकता व प्रयोग इसका प्रत्यक्ष उदाहरण इस प्रकार भारतीय पंचांग अनेक विदेशी व साम्प्रदायिक प्रभावों से प्रभावित होता हुआ विकास के अनेक स्तरों से गुजरा है लेकिन आज भी अनेक रूपता, स्थानीय प्रभावों व साम्प्रदायिक विभाजनों का शिकार है। पूरे राष्ट्र के लिये एक सर्वमान्य पंचांग का अभाव आज भी भारत में है । काल गणना के विकास का संक्षिप्त अध्ययन करने के पश्चात् उसके वास्त. विक स्वरूप को समझने के लिए इसकी इकाईयों को देखना अनिवार्य है । समय
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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