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________________ भारतीय संवतों का इतिहास उदयास्त, कालांश आदि महत्त्वपूर्ण तथ्यों का विकास भारतीयों ने स्वयं किया, विदेशों से इन्हें नहीं सीखा, बाल कृष्ण का ऐसा विश्वास है कि प्रतिवृत्त पद्धति को हमने हिर्पाकस तथा टालमी के ग्रन्थों से ग्रहण किया है ।' बाल कृष्ण आगे कहते है, " रविचन्द्र स्पष्टीकरण और पंचग्रह स्पष्टीकरण ये दो ज्योतिष में महत्व के विषय है । इनका ज्ञान हिपार्कस के पहले पाश्चात्यों को था ही नहीं, यह सभी यूरोपियन ग्रन्थकार स्वीकार करते हैं । मन्दफल संस्कारपूर्वक चन्द्र सूर्य स्पष्टीकरण करने की प्रक्रिया रोमक सिद्धान्त के यहां आने के पूर्व रचित पुलिश सिद्धान्त में दी हुई है । इस पर से यह स्पष्ट अवगत होता है कि वह हिपार्कस के पूर्व सिद्ध की गयी थी । अतः यह प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है कि हमने ग्रीक लोगों से क्या लिया ?"" केन्द्र संज्ञा महत्वपूर्ण तथ्य है और इसके सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि इसको भारतीयों ने यवनों से प्राप्त किया बालकृष्ण का इस सम्बन्ध में कथन है : "यदि परकीयों से हम लोगों को कुछ मिला भी हो तो ग्रीक अथवा बँबिलोनियन लोगों से हमें उपर्युक्त नियम का दिग्दर्शन मात्र हुआ था, दूसरा कुछ नहीं मिला । वेधप्राप्त बातों इत्यादि का कोई क्रमबद्ध ज्ञान हमें प्राप्त नहीं हुआ । जितना कि यूरोपियन लोग समझते है इतने हम परकीयों के मुखापेक्षी नहीं रहे है । "3 बाल कृष्ण का विचार है कि आवागमन के अपर्याप्त साधनों तथा अन्य बहुत सी कठिनाईयों के कारण प्राचीन काल में इस प्रकार के ज्ञान के आदान-प्रदान की सम्भावना बहुत कम थी : "प्राचीन काल में जब ज्योतिष शास्त्र जानने वाले विद्वानों से भेंट होना प्राय : असम्भव मा था और भेंट हो भी गयी तो भाषान्तर रूपी अड़चन का उल्लंघन करना तो साम्भाव्य बातों के परे था, तब कुछ स्थूल विषयों को छोड़कर एक दूसरे से शास्त्रीय सूचना मात्र मिलने के अतिरिक्त और क्या हो सकता था ?”४ १० बाल कृष्ण के समस्त विवेचन का मूल यही है कि भारतीयों ने स्वतन्त्र रूप में ज्योतिष का विकास किया है, अनेक महत्व के तत्व जिनको भारत में वेध किया गया पाश्चात्य ज्योतिष सिद्धान्तों से किसी भी प्रकार कम महत्व के नहीं १. शंकर वाल कृष्ण दीक्षित, 'भारतीय ज्योतिष', अनु० शिवनाथ झारखण्डी, प्रयाग, १६६३, पृ० ६६६ । २. वही, पृ० ६७० । ३. वही, पृ० ६७१ । ४. वही, पृ० १७२ ।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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