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________________ षष्ठम् अध्याय निष्कर्ष इससे स्पष्ट है कि भारतवर्ष में संवतों की विशाल संख्या रही है। इन संवतों ने धार्मिक उत्सवों व अनुष्ठानों के निर्धारण, अभिलेखों के अंकन, साहित्य-लेखन व इतिहास-लेखन आदि अनेक प्रकार के उद्देश्यों को पूरा किया है । तथापि उनमें से कोई भी सर्वमान्य होकर भारत का राष्ट्रीय संवत् नहीं बन पाया। यहां तक कि भारत सरकार द्वारा ग्रहण किया गया "राष्ट्रीय पंचांग" (जो अभी तक शक संवत् के नाम से ही सम्बोधित किया जाता है) भी राष्ट्रीय भावनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाया। भारत में प्रचलित हुए अनेक संवतों का विश्लेषणात्मक अध्ययन करते हुए उनकी उत्पत्ति व विलुप्ति के मूल कारणों को दिखाना तथा भारतवर्ष के लिए एक राष्ट्रीय संवत् के महत्व को बताना ही पुस्तक लेखन का आधार है। भारतीय संवतों के अध्ययन व उनके आरम्भ की परिस्थितियों तथा कारणों से यही विदित हुआ है कि भारत में एक ऐसे संवत् का सदैव अभाव रहा जो सम्पूर्ण राष्ट्र में समान रूप से प्रयुक्त हो पाता। संवतों की इस भिन्नता ने इतिहास-लेखन में उलझन पैदा की । बहुत से संवत् विभिन्न क्षेत्रों से एवं सम्प्रदायों से सम्बद्ध रहे हैं। संवत् का आधार गणना पद्धति होती हैं। गणना पद्धति का विकास शनैः-शनैः होता है तथा विश्व के अलग-अलग स्थानों पर थोड़े-थोड़े अन्तर वाली गणना पद्धतियों का विकास प्रागैतिहासिक युग से ही आरम्भ हो गया था और अब तक इन पद्धतियों में निरन्तर सुधार किए जाते हैं । एक देश की पद्धति का दूसरे देश की पद्धति के साथ आदान-प्रदान भी हुआ है । भारतीय कालगणना पद्धति के अध्ययन से यह पता चलता है कि भारत में वैदिक काल में ही समय-मापन की पद्धति का वैज्ञानिक स्वरूप निर्धारित हो चुका था व इस पद्धति के आधार पर बहुत से संवतों की स्थापना समय मापने
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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