SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम् अध्याय भारत में सम्वतों की अधिक संख्या की उत्पत्ति के कारण तथा वर्तमान राष्ट्रीय पंचांग भारत में इतने अधिक संवतों का प्रादुर्भाव हुआ इसके बहुत से कारण रहे, अनेक तत्कालीन परिस्थितियां थीं जिन्होंने नये-नये संवतों को जन्म दिया। सर्वप्रथम, धर्म चरित्रों, देवताओं व धार्मिक नेताओं को महत्ता प्रदान करने के लिए उनके जीवन घटनाओं से सम्बन्धित विभिन्न संवतों का आरम्भ किया गया। धार्मिक क्षेत्र में यह एक प्रतिस्पर्धा सी रही कि अपने धर्मनेता को दूसरे से अधिक प्राचीन व विशिष्ट दर्शाया जाये। अतः, उनके नाम पर संवत् जारी किये गये । इस श्रेणी में हिन्दुओं के सृष्टि संवत् का नाम लिया जा सकता है । प्राचीनता की होड़ में यह संवत् इतना बढ़ गया कि इसके व्यतीत वर्षों की गणना करना भी सम्भव न रहा तथा आम जनता को इसके व्यतीत वर्षों अथवा चालू वर्ष की संख्या याद रखना भी कठिन हो गया । अतः इस संवत् का व्यावहारिक महत्व तो नगण्य ही रह गया, मात्र इसकी प्राचीनता ही एक विशेषता रही और इसने भारतीय संवतों की संख्या को ही बढ़ाया, अपने आपको उपयोगी नहीं बनाया । अकेले हिन्दू धर्म में ही धर्म के नाम पर सृष्टि संवत्, कृष्ण संवत्, युधिष्ठिर संवत्, कलि संवत् आदि का प्रादुर्भाव हुआ, फिर और दूसरे सम्प्रदायों ने भी जैन, बौद्ध, आर्यसमाज आदि ने अपने धर्म प्रचारकों के नाम पर संक्तों का आरम्भ किया। संवतों की अधिकता का दूसरा कारण विदेशियों का भारत में आगमन तथा उनके द्वारा अपनी गणना पद्धति को भारत में आरोपित करना रहा। समय-समय पर अनेक विदेशी जातियां भारत में आयीं । अपनी संस्कृति के दूसरे तत्वों के साथ वे गणना पद्धति भी साथ लायीं तथा उसको भारत में स्थापित करने का प्रयास किया। इस कारण भारत में सैल्यूसीडियन, शक, हिज्रा व ईसाई संवतों का आरम्भ हुमा । यद्यपि इन जातियों ने भारत की गणना पद्धति से भी
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy