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________________ १४४ भारतीय संवतों का इतिहास इसके चलाने वाले का कुछ भी पता नहीं चलता। गंगावंशियों के दानपत्रों में केवल सम्वत, मास, पक्ष और तिथि या सौर दिन दिये हए होने के तथा वार किसी में न होने से इस सम्वत् के प्रारंभ का ठीक-ठीक निश्चय नहीं हो सकता।"१ आगे ओझा लिखते हैं : "जब तक अन्य प्रमाणों से इस सम्वत् के प्रारम्भ का ठीक-ठीक निर्णय न हो तब तक हमारा अनुमान किया हुआ इस सम्वत् के प्रारंभ का यह सन् (५७० ई०) भी अनिश्चित ही समझना चाहिए।" ___ यह संभव है गंगा व गांगेय सम्वत् एक ही सम्वत् के दो नाम पड़ गये हों तथा देश के विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग तिथियों में सम्वत् ग्रहण किया गया हो तथा फसली सम्बत् के समान विभिन्न आरंभ-तिथियां ग्रहण की गयी हों । कलण्डर सुधार समिति ने गंगा सम्वत् का आरंभ ६३८ ईस्वी के बाद ही रखा है । इस रिपोर्ट में भी गंगा सम्वत् की न तो कोई आरंभ तिथि दी गयी है और न ही १९५४ ईस्वी में इसका चालू वर्ष क्या था? यह दिया गया है। अत: इस सम्बत् के सम्बन्ध में इतना ही स्पष्ट है कि यह गंगावंश के किसी शासक द्वारा चलाया गया तथा इसका प्रचलन दक्षिण भारत के पूर्वी प्रदेश में था और अनुमानतः "यह सम्वत् ३५० वर्ष से कुछ अधिक समय तक प्रचलित रहकर अस्त हो गया।" बर्मो कोमन सम्वत् इस सम्वत् का नाम बर्मी कोमन संभवत: इसीलिए पड़ा कि इसका प्रयोग बर्मा में हमा । बर्मी कोमन सम्वत् का शाब्दिक अर्थ भी यही निकलता हैबर्मा में सामान्य रूप से प्रचलित सम्वत् । भारत में बुद्ध गया व इसके बाद बर्मा में इस सम्वत् का प्रसार हुआ। "भारत में महाबोधि मन्दिर बुद्धगया से प्राप्त अभिलेखों से बर्मी कोमन सम्वत् की तिथियां प्राप्त होती हैं। सर्वाधिक प्राचीन लेख एक पत्थर पर है, जिसमें मन्दिर के निर्माण तथा जीर्णोद्धार की तिथियां दी गयी है। १. गौरी शंकर ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर, १९१८, पृ० १७६ । २. वही, पृ० १७७ । ३. वही। ४. एलेग्जेण्डर कनिंघम, "ए बुक ऑफ इण्डियन एराज", वाराणसी, १६७६, पृ०७२।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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