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________________ १०६ भारतीय संवतों का इतिहास उपरोक्त विवेचन से यह तथ्य सामने आते हैं कि १. प्रसिद्ध शक सम्वत् ७८ ई० से प्रारम्भ हुआ। २. यह उज्जयिनी से सम्बन्धित है। ३. यह कोई धर्म विशेष से सम्बन्धित धार्मिक संवत् नहीं है, बल्कि अधामिक सम्बत् है तथा अन्य अधार्मिक सम्वतों की भांति ही इसके आरंभ की संभावना भी राज्यारोहण विजय या किसी महत्वपूर्ण राजा के राज्यारम्भ की घटना से की जाती है । ४. इसका आरम्भकर्ता राजा शक प्रमुख या राजा था। ५. उसका नाम विक्रमादित्य नहीं था और कनिष्क तथा उत्तरी पश्चिमी भारत के कुषाण शासक या और कोई समकालीन सातवाहन राजा या और कोई भारतीय शासक का इस सम्वत् के प्रारम्भ से कोई सम्बन्ध नहीं था। इस सम्वत् का आरम्भ किसने किया ? इस सम्बन्ध में जैन स्रोतों से मदद मिलती है।' शक सम्त् के सम्बन्ध में एक प्रमुख आपत्ति यह उठायी जा सकती है कि कनिष्क स्वयं कुषाण था। फिर उसके द्वारा चलाया गया सम्वत् शक सम्वत् क्यों कहलाया ? इसका कारण सम्भवतः यही रहा होगा कि कनिष्क अधीन शक क्षत्रपों ने अनेक वर्षों तक इस सम्वत् का प्रयोग किया । अतः धीरे-धीरे शकों का नाम सम्वत् के साथ जुड़ गया । अपनी आरम्भिक शताब्दियों में शक नाम इस सम्वत् के साथ जुड़ा नहीं था। यह लगभग ५०० वर्ष बीतने के बाद जोड़ा गया। किन्तु यह भी अधिक विश्वनीय तथ्य नहीं लगता कि जो सम्बत् का आरम्भकर्ता था उसका नाम व जाति का नाम लुप्त हो गया । तथा उसके अधीनस्थ शासक जो मात्र सम्बत् का प्रयोग करने वाले थे उन्हीं के नाम से सम्वत् को जाना जाने लगा व नाम भी शक सम्वत् ही पड़ गया। जबकि इसकी समकालीन अन्य सम्वतों का प्रयोग विभिन्न जातियों व राजवंशों ने किया लेकिन वे आज तक भी अपने आरम्भकर्ताओं के नाम से ही जाने जाते हैं । इस प्रकार सम्वत् के नाम परिवर्तन के मूल में क्या विशेष कारण थे स्पष्ट पता नहीं चलता। इस संदर्भ में मात्र अनुमान ही लगाये जा सकते हैं। शक सम्वत् भारतीय इतिहास का एकमात्र ऐसा सम्वत् है जिसका प्रयोग इतिहास लेखन, साहित्य, अभिलेखों के अंकन, सामाजिक व धार्मिक कृत्यों के निर्धारण, मुहूर्त निकालने, राजकीय कार्यों को पूरा करने तथा खगोलशास्त्रीय दायित्वों को पूरा करने के लिये एक साथ किया गया। राजकीय कार्यों के लिये कभी यह प्रयोग हुआ व कभी लुप्त हो गया। लेकिन धार्मिक, सामाजिक व खगोलशास्त्रीय कार्यों के लिये अपने आरम्भ से आज तक निरन्तर प्रयुक्त हो १.ज्योति प्रसाद जैन, "द जैन सोसिज ऑफ द हिस्ट्री ऑफ एंशियेंट इंडिया", दिल्ली, १९६४, पृ० ७७ ।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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