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________________ भारतीय संवतों का इतिहास अन्ततोगत्वा नवीं सदी के मध्य में इस सम्बत् को विक्रम सम्वत् या राजा विक्रम सम्वत् कहा जाने लगा।' पी० सी० सेन गुप्त ने खगोलशास्त्रीय तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर कृत का अर्थ इस प्रकार दिया है : "सूर्य-चन्द्रमा-बृहस्पति व तारों से मिलकर कृत युग के आरम्भ के जो चिन्ह बनते हैं जिन्हें कि ६३ ई० पूर्व में देखा जा सकता था। इस वर्ष सूर्य शीत मकर संक्रान्ति में २४ दिसम्बर को पहुंचा तथा पौष का पूर्णमासी का दिन इससे अगला दिन था। कृत, मालव अथवा विक्रम सम्वत् की वास्तविक शुरूआत इस प्रकार पांच वर्ष बाद पूर्णमासी के दिन २८ दिसम्बर, ५८ ई० पूर्व से हुयी। इस प्रकार सम्वत् ० वर्ष करीब-करीब ५७ ई० पूर्व ही था तथा सम्वत् वर्ष की संख्या चालू वर्ष को दर्शाती है, जैसाकि क्रिश्चन सम्बत् में हैं।"२ ऐसा अनुमान किया जाता है कि विदेशी आक्रमणों से मुक्त भारत ने ५७ ई० पूर्व से ७८ ई० तक १३५ वर्ष शान्ति और समृद्धि का उपभोग किया। इसके बाद शकों के पुनः आक्रमण आरम्भ हुए। अवन्ति का भू भाग मालवों के हाथ से छिन गया फिर भी उनकी राष्ट्रीयता विद्यमान रही तथा अवन्ति को पुनः जीतने तथा फिर एक बार कृत युग की स्थापना करने की आशा में, वे अवन्ति के उत्तर पूर्व में हट गये जहां एक नये मालव देश का निर्माण किया तथा ५७ ई० पूर्व में स्थापित सम्वत् अब भी कृत कहलाता रहा । शकों के साथ उनका युद्ध चलता रहा, किन्तु शक्ति के संगठन के अभाव में वे अपनी खोयी भूमि व कीर्ति न पा सके । कृत युग स्थापना का विचार धूमिल होने लगा, किन्तु मालव राज्य अब भी जीवित था अतः सम्वत् को अब मालव सम्वत्, मालवगण सम्वत् तथा मालवेश सम्वत् नामों से पुकारा जाने लगा। ईसा की आठवीं, नवीं शताब्दी तक भारत में राजतन्त्र पूर्ण रूप से स्थापित हो गया। गणराज्य की कल्पना भी भारतीयों के मस्तिष्क क्षितिज से परे हट गयी। मालवगण की स्मृति भी धूमिल पड़ने लगी, लेकिन विक्रमादित्य की स्मृति अब भी लोगों के मानस पटल पर स्थिर रही तथा सम्वत् का नाम भी विक्रमादित्य के नाम के साथ जोड़कर विक्रम सम्वत् कहा जाने लगा। अभी तक हमने फरगूसन, कनिंघम, मार्शल, अय्यर, अल्तेकर आदि अनेक विद्वानों के विचार देखे, जिन्होंने विक्रम सम्वत् की प्रचलित मान्यता से पृथक १. राजबली पाण्डेय, "विक्रमादित्य सम्वत् प्रवर्तक", वाराणसी, १९६०, पृ० ८६ । २. पी० सी० सेन गुप्त, "एंशियेंट इण्डियन क्रोनोलॉजी", कलकत्ता, १९४७, पृ० २४१ ।
SR No.023417
Book TitleBharatiya Samvato Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAparna Sharma
PublisherS S Publishers
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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