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________________ क्रियाविषयतीव्ररुचिविशेषात् स्वापत्यानां प्रविजिषूणां निषेधं न करोमि, अन्योऽपि यः कश्चित् प्रव्रजति तस्य प्रव्रजोत्सवं स्वयं कारयामि, तत्स्वजनानामाजन्मावधिनिर्वाहादिचिंतां च करोमीत्यादि प्रतिपत्तिमान, सर्वाः स्वसुताः श्रीनेमिपाचे प्रबाजितपूर्वी स्वयमष्टादशसहस्रसाधुषु कृतिकर्मकृत् श्रीकृष्णनरेंजः, श्रीश्रेणिकनृपादयश्व निदर्शनमत्रेति ॥ १७४॥ एते च ततीयत्नंगश्राछाः क्रियाविरहितत्वेन बहिदोंकेषु क्रियापरश्रावन्महिमानं न दधतीति बहिरसाराः, अंतःसारतया तु पू. र्वमवधायुषोऽवांतसम्यक्त्वा वा वैमानिकवर्जमायुर्न बध्नंत्येव, यदागमः ॥ १७५॥सम्मदिट्टी जीवो । गच्च निअमा विमाणवासीसु ॥ ज न विगयसम्मत्तो । अहवा न बछानो नरए ॥ १७६ ॥ क्रिया संबंधि तीव्ररुचिविशेषयी दीका लेवानी इच्वाळा पोताना संतानोने हुँ निषेध करतो नथी, तेम वीजो पण जे को दीका बीये, तेनो दीक्षा महोत्सव हुँ पोते करुं , तेमज तेना कुटुंबीओना निर्वाह आदिकनी चिंता क जीवित पर्यंत हुं करुं बुं, इत्यादिक अंगीकार करनारा, तेमज पोताना सघळा पुत्रोंने श्रीनेमि-18 नाय मनु पासे दीका अपावीने पोते अढार हजार साधुनोने वंदना करनारा श्रीकृष्ण राजा, तथा श्रीश्रणिकगजा आदिकना दृष्टांतो अही जाणवां ।। १७४॥ एवीरीतना एत्रीजा नांगावाला थावको क्रियाविनाना होवायी बहा रना सोकोमा क्रियामां तत्पर एवा श्रावकनी पेठे महिमा धारण करता नयी, माटे बहारथी सारविनाना ; तमज अंदरथी सारपणायें करीने पूर्वे श्रायु बांध्या विना समकीतने नहीं वमता यका अथवा वैमानिक शिवायर्नु ग्राय बांधेज ने आगममां पण कडं ने के-॥१७५॥ सम्यग् दृष्टी जीव निश्चयें करीने विमानवासीओमा जायचे, | क्यारे ! तोके जो तेनुं सम्यक्त्व न गयु होय तो, अथवा नरकनुं आयु न बांध्युं होय तो ॥ १७६ ॥ श्री उपदेशरत्नाकर
SR No.023410
Book TitleUpdesh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalan Niketan
PublisherLalan Niketan
Publication Year1925
Total Pages406
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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