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________________ ६६६६६६६६६६००००००००००००८. या विशेषमात्मनो गत्यादिवदणं जानातीति विशेषज्ञः, तथा चाह,-होपपत्तिमम केन कर्मणा । कुतः प्रयातव्यमितो नवादिति ॥ विचारणा यस्य न जायते हृदि । कथं स धर्मप्रवणो नविष्यति ॥ एए ॥ अथवा विशेष कालाधुचितांगीकारादिलकणं, यद्यत्र कानादौ हातुमुपादातुं वा युक्तं तदादिस्वरूपमित्यर्थः,तं वेत्ति, तथा प्रवर्तते च यः स विशेषज्ञः ॥६० ॥ प्रदीपपात्रे रनसतस्तनपाद्नूगतेन तैलेनो पानदयंजकस्य श्वसुरस्यौदार्यादिपरीकार्य तीवोदरव्यथावादिवधजवरपीमोपशमनिमि तमामझकप्रमाणमौक्तिकप्रवासादिचर्णरोडककारकश्रेष्टिवत् ॥ ६१ ॥ 0000००००००००००००990031200०००००००००००००००० श्री उपदेशरत्नाकर ६ MIERSPEP६६६ अथवा विशेष एटने आत्माना गति दिक बाणरूप विशेषने जे जाणे , ते विशषज्ञ कहे वाय: वळी कडं ने के, कया कर्मयी मारी अहीं नत्पत्ति थ? तया आ जवयी हवे मारे क्यां जब ? एवी रीतनो विचार जेना ह्रदयमा यतो नथी, ते मनुष्य धर्ममां शी रीते तत्पर थशे ॥ ५० ॥ अथवा विशेष एटले काल आदिक नचित अंगीकार आदिक सदाए वाला विज्ञपने, अर्थात जे काल आदिकने विपे जे कंह गेम अथवा ग्रहण कर युक्त जे, ते आदिक स्वरूपने जे जाणे ने, तथा ते प्रमाणे जे प्रवर्ने छे, ते विशेषज्ञ कहेवाय ॥ ६ ॥ दीवाना पात्रमा उतावळयी पृरतां थकां पृथ्वीपर पमेला तेवळ करीने पगरखां चोपमनारा ससरानी उदारता आदिकनी परीक्षा माटे पेटमां घणो घणो दुखावो यवान कहेनारी बहुना पेटनी पीमा दूर करवा माटे अांदळ जेवमां मोती तथा प्रवाना आदिकना चाईनो रोटलो करनार इंनी पें विपक्ष जाए.वो ॥६१ ॥ .4200००६
SR No.023410
Book TitleUpdesh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalan Niketan
PublisherLalan Niketan
Publication Year1925
Total Pages406
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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