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________________ ॥ ३॥ 9.0000200.0000०००००००००००० तथा मध्यस्थो धर्मग्रहणेऽधिकारी, तल्लक्षणं च, न हु कुग्गहगहिअमई । सुविआरी जो सुदख्खयाइगुणो॥ नकहिं विस्तछो । मज्झत्यो सो सुए नणिो ॥ ३४ ॥ स एव हि यथास्थितं धर्माधर्मादिवस्तुतत्वं परिचिनत्ति, यमुक्तं-विमसंमि दप्पणे जह । पझिविंबई पासवत्तिवत्थुगणे॥ मजकत्यंमि तहानणु । संकमई समग्गधम्मगुणो ॥ ३५ ॥ अपिच, अशास्त्रजं संस्करणं हि बुझे-रखोचनं वस्तुविझोकनं च ॥ आचार्य शिकाव्यतिरिक्तमेव । माध्यस्थ्यमाहुः परमं पटुत्वं ॥३६ ॥ दृष्टांताश्चात्र प्रागुक्तसोमवसुविप्रादयः, तथा परीक्षको योग्यः, सारेतरवस्तुपरीकैकपरत्वात् कुरुचं नृपादिवत् ॥ ३० ॥ ___ वळी मध्यस्य मनुष्य पण धर्म ग्रहण करवामां अधिकारी जे अने तेनुं लक्षण नीचे मुजब ; जेनी | कदाग्रहयुक्त बुछि नयी, जे उत्तम विचारवाळो चे, तथा जे दपणा आदिक उत्तम गुणावाळो , तेमज जे क्यांय पण रागी के पी नयी, तेने सिद्धांतमा मध्यस्य कहेलो डे ॥३४॥ अने तेवो मध्यस्थ मनुष्यज धर्माधर्मा दिवस्तुतत्वने ययार्य रीते जाणी के जे. कडं डे के जेम निर्मन दपाणमां पासे रहेली वस्तुओन समूहनुं प्रतिबिंध में जे, तेम मध्यस्य मनुध्यमां खरेवर धर्मना सघळा गुणो संक्रमे ॥ ३५ ॥ शास्त्रनी सहाय विनाम बुछिने सतेज करनार अने चकुनी सहाय विनाज वस्तु स्वरूपने विनोकन करनार एवं प्राचार्यनी शिक्षा (शीखारण, -केळवणी) विनाज प्राप्त यये मध्यस्यपणूं परम पटुताबाटुंडे अर्थात् मधस्यता एज खरेखरी पटुता-कुशलता M.॥३६॥ अहीं पूर्व कहेला सोमवसचित्र आदिकनां दृष्टांतो जाणी देवां वळी परीक्षा करनार मनुष्य पण योग्य , केमके ते कुरुचंद्र राजा आदिकनी पेठे सार असार वस्तुनी पररीका करी शके छे) ॥३७॥ 11००००००००००००००००००.000000200... श्री उपदेशरत्नाकर -- .. "
SR No.023410
Book TitleUpdesh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalan Niketan
PublisherLalan Niketan
Publication Year1925
Total Pages406
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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