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________________ ००००००००० श्त्युत्तरोत्तरनिदर्शनसंनिन्ना जो । नव्योत्तमा नवत सद्गुरुवाकूतटाके ॥ येनाप्य संस्कृतिसुखानि जयश्रीयाऽष्ट-कर्महिषा विलसयाश्यमोकप्रदम्या ॥ ३३ ॥ ॥ इति तपाश्रीमुनिसुंदरसूरिविरचिते उपदेशरत्नाकरे अष्टमस्तरंगः॥ एवी रीते हे उत्तम जव्य लोको ! तमो सद्गुरुनी वाणीरूपी तळावमा उत्तरोत्तर (सारां ) दृष्टांत सरखा थाओ ? के जेथी संसारना सुखो पामीने, आरे कोरूपी शत्रुओनी ज्यादमीवके करीने अक्षय एवो मोदरूपी बदमी साथे तमो विलास करो ॥३३॥ " एवी रीते तपगच्छवाळा श्रीमुनिसुंदर सूरिए रचेला उपदेश रत्नाकर नामना ग्रंयमां" ॥ आठमो तरंग समाप्त थयो । श्री उपदेशरत्नाकर
SR No.023410
Book TitleUpdesh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalan Niketan
PublisherLalan Niketan
Publication Year1925
Total Pages406
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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