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________________ શ્રાવક પ્રજ્ઞપ્તિ • ૨૬૫ यथासंख्यं वर्जनासेवनरूपमिति । तत्रावचं गर्हितं पापं सहावद्येन सावा, योगा व्यापाराः, तेषां वर्जनारूपं परित्यागरूपमित्यर्थः । कालावधिनैवेति गम्यते, मा भूत्सावधयोगपरिवर्जनामात्रमपापव्यापारासेवनाशून्यमेव सामायिकमिति अत आह- इतरयोगासेवनारूपं निवरद्ययोगप्रतिसेवनारूपं चेति । सावद्ययोगपरिवर्जनवनिरवद्ययोगपरिसेवनेऽपि अहर्निशं यत्नः कार्य इति दर्शनार्थमेतदिति । एत्थ पुण समाचारी- "सामाइयं सावगेणं कहं कायव्वंति इह सावगो दुविहो इड्डिपत्तों अणिड्डिपत्तो य । जो सो अणिड्डिपत्तो सो चेइयघरे साहुसमीवे घरे वा पोसहसालाए वा जत्थ वा वीसमइ अच्छइ वा निव्वावारो सव्वत्थ करेइ सव्वं । चउसु ठाणेसु णियमा कायव्वं चेइयघरे साहुमूले पोसहसालाए घरे आवस्सगं करोति त्ति तत्थ जइ साहुसगासे करेइ तत्थ को विही जइ परंपरभयं णत्थि जइ विय केणइ समं विवाओ णत्थि जइ कस्सइ न धरेइ मा तेण अंच्छवियंछी कज्जिहि जइ धारणगं दट्ठण न गेण्हइ मा भज्जिहिइ जइ वावारं ण करेइ ताहे घरे चेव सामाइयं काऊण वच्चइ पंचसमिओ तिगुत्तो इरियाउवउत्तो जहा साहू भासाए सावज्जं परिहरंतो एसणाए कटुं लेटुं वा पडिलेहिउँ पमज्जिउं एवं आयाणे निक्खिवणे खेलसिंघाणए न विगिंचइ विगिचंतो वा पडिलेहेइ पमज्जइ य, जत्थ चिट्ठइ तत्थ तिगुत्तिणिरोहं करेइ, एयाए विहीए गंता तिविहेण नमिऊण साहुणो पच्छा सामाइयं करेइ, करेमि भंते सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि दुविहं तिविहेणं जाव साहुं पज्जुवासामित्ति काऊण पच्छा इरियावहियं पडिक्कमइ पच्छा आलोएत्ता वंदइ आयरियाइ जहारायणियाए पुणो वि गुरुं वंदित्ता पडिलेहित्ता निविट्ठो पुच्छइ पढइ वा एवं चेइएसु वि जया सगिहे पोसहसालाए वा तत्थ नवरि गमणं णत्थि । जो इड्डिपत्तो सो सव्विड्डीए एइ तेण जणस्स अत्थाढा होइ आढियाय साहुणो सुपुरिसपरिग्गहेणं जइ सो कयसामाइओ एइ ताहे आसहत्थिमाइजणेणय अधिगरणं न वट्टइ ताहे ण करेइ कयसामाइएण य पाएहिं आगंतव्वं तेण ण करेइ आगओ साहुसमीवे करेइ जइ सो सावगो तो ण कोइ उठेइ अह अहाभद्दओ जइ पूया कया होउत्ति भणंति ताहे पुव्वरइयं आसणं कीरइ आयरिया उट्ठिया य अच्छंति तत्थ उटुिंतमणुट्टिते दोसा विभासियव्वा पच्छा सो इड्डिपत्तो सामाइयं करेइ अणेण विहिणा करेमि भंते सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि दुविहं तिविहेणं
SR No.023403
Book TitleShravak Pragnapti Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshekharsuri, Dharmshekharvijay
PublisherArihant Aradhak Trust
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size38 MB
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