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________________ तद्धिते अ० ॥ १२९ ॥ अतमवादेरीषदसमाप्ते कल्पप् देश्यप् देशीयर् ७|३|११ ५८३ तम्बाद्यन्तवत् त्याद्यन्ताद् नाम्नश्च किञ्चिदूनेऽमी त्रयः स्युः । पचतिकल्पं पचतिदेश्यं पचतिदेशीयम् । पटुकल्पा पटुदेश्या पटुदेशीया । तरप् અને तमप् वगेरे प्रत्यये। वगरना त्याद्यन्त प्रियापहथी मने नामथी थोडु अधुर होय सेवा अर्थने सूयववा कल्पप्– कल्प, देश्यप्-देश्य भने देशीयर - देशीय प्रत्यये। बाजे छे. ईषद् अपरिसमाप्तम् - पचति+कल्प - पचतिकल्पम् ईषद् अपरिसमाप्तम्- पचति+कल्प - पचतिकल्पम् =ते थेाडु मधू३ राधे छेते धावु छे ईषद् अपरिसमाप्तम् - पचति + देश्य = पचतिदेश्यम्-ते थे। धूधे ते शंधवा मेरे छे. ईषद अपरिसमाप्तम् - पचति + देशीय पचतिदेशीयम् =ते थेाडु मधू रांधेछे-ते रांधवा नेवु ४रे छे. ईषद् असमाप्ता - पटु+कल्प पटुकल्पा= थोडी अधुरी होशियार-डोशियार नेवी ईषद असमाप्ता - पटु+देश्य - पटुद्देश्या= थोडी अधुरी होशियार - डेंशियार नेवी. ईषद असमाप्ता - पटु + देशीय पटुदेशीया = थोडी अधुरी होशियारહાશિયાર જેવી. - (A) "नाम्नः प्राग्बहुव” ७| ३ | १२ | किचिदूने । बहुपटुः । "
SR No.023392
Book TitleHaim Laghu Prakriya Tippanya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyankarsuri
PublisherPriyankar Sahitya Prakashan
Publication Year1987
Total Pages612
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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