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________________ २. दोहाकोशनी भाषाः आ प्रन्यन अपभ्रंश, जे सामान्य अपभ्रंश अत्यार सुधीनां उद्धरणोमा जोडे ते प्रकार- छे के कोई बीजा प्रकारनुं ? प्रो. याकोबी ( सनत्कुमारचरिउ Intro P. XVIII ) ना अभिप्राये काण्ह अने सरहना दोहाकोशन अपभ्रंश पौर्वात्य अपभ्रंश छे. तेना कारणमा ते जणावे छे के तेना व्याकरणप्रयोगो क्रमदीश्वर, रामशर्मन् अने मार्कण्डेयने अनुसरे छे. परन्तु अर्वाचीन पौर्वात्य देश्यभाषाओ जेवी के मैथिली, ओरिय, बङ्गाली, आसामी इ. आ अपभ्रंश साथे सम्बन्ध धरावती नथी. दा. त. वासु-व्यास, स्वार्थे नरजातिमां ड अने नारीजातिमा डी, हमु-अहम् , मेरम्मम, तेर-तव इ. मार्कण्डेयादि पौर्वात्य वैयाकरणोए बतावेला विशेषो अर्वाचीन पौर्वात्य देश्वभाषाओमां मालम पडता नथी. आम एक बाजुए मार्कण्डेयादिए नोंघेली अप. भ्रंश भाषा अर्वाचीन पौर्वात्य देश्यभाषाओनी जनेत्री नथी, ए तो सिद्ध ज छे.१ छतां बीजी बाजुए मार्कण्डेयादिए नोंधेला अपभ्रंशने पौर्वात्य अपभ्रंश तरीके जुहूँ ओळखाववा प्रो. याकोबी, डो. शहिदुल्ला आदि प्रयत्न करे छे. डो, शहिदुल्ला हेमचन्द्रना अपभ्रंश अने रामतर्कवागीश, क्रमदीश्वर अने मार्कण्डेये नोंघेला अपभ्रंशनी विस्तरशः सरखामणो करे छे. (सदर Introduction P.45-53.) परन्तु अपभ्रंशना प्रयोगनी बहुलताने हिसाबे तेमणे बतावेला विशेषो एवा नथी के पौर्वात्य अपभ्रंश तरीके जुदी अपभ्रंश भाषा स्थापी शकाय. टुंकमां मार्कण्डेये बतादेवी नागर अपभ्रंश अने हेमचन्द्रना व्याकरणनी अपभ्रंश जुदी छे, एवा सिद्धान्तनुं विधान वधारे पडतुं छे. त्यारे काण्ह अने सरह नी भाषाने कया अपभ्रंश तरीके गणवी ? शहिदुल्ला काण्ह अने सरहना अपभ्रंशने अर्वाचीन पौर्वात्य देश्यभाषाओ साथे सम्बन्ध न होवाने कारणे, प्रो. याकोबीने अनुसरी तेने पौर्वात्य अपभ्रंश कहेता नथी; परन्तु तेमने मते प्रस्तुत गीतोर्नु अपभ्रंश बौद्ध अपभ्रंश छे.२ अमारे मते तो आ पण भ्रम छे; कारण के सदर गीतो १. Shahidulla; Intro. P. 33. सरखावो सुनीतिकुमार चेटरजीना शब्दो " In the East, the local patois does not seem to have been cultivated after the days of Asoka." - D. D. B. L. Intro. P. 91. २. Shahidulla: Intro. P. 55 ( see the conclusicn of the chapter ).
SR No.023391
Book TitleApbhramsa Pathavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Chimanlal Modi
PublisherGujarat Varnacular Society
Publication Year1935
Total Pages386
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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