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होय के बीजी ने पंक्ति २१ मात्राना बीजा छन्दनी बनावी होय. आ छेक्टनी बे पंक्ति अ का. ज.ना प्रथम काव्य चर्चरीमा छे. त्यां टीकाकार ते छन्दने एकविंशतिमात्राकलितं कुन्दनामकं छन्दः एम कहे छे. छं. शा. ५ पा. ३७ (अ.) ६ + ४ + ६ +५ = २० मात्रानो रासावलय आ छन्दने कही शकाय.
वर्षाना प्रत्या वेश करतो राजा आ गीतमा वसन्तनुं वर्णन करे छे.
११- १४ आ छन्दर्मा घणी ज भ्रष्टता छे, छन्दनी प्रथम बे पंक्ति १५ + १० मात्रानी छे. अन्भत्थेमिमां ए द्विमात्रिक छे. बीजी पंतिमां ऐला भागमांथी सा छन्दनी दृष्टिए त्याज्य छे. बीजी बे पंक्तिओमां १३+९ मात्रानो छन्द छे. चिण्हेंमां हेंनी एक मात्रा गणवी. प्रथम बे पंक्तिनो छम्द छं. शा. ४२ (अ) प्रमाणे विद्याधरहास छे. हेल्ली बे पंक्तिओमां छं. शा. ४१ (ब) प्रमाणे अभिनववसन्तश्री नामे चतुष्पदी छे.
१५-१८. आमां १५ मात्रानो पारणक छन्द के जेना लक्षणनुं विवेचन पूर्वे करवामां आव्युं छे. पं. १७मां दिट्ठी छे तेने बदले दिट्ठि वांचो.
१९ १२. आमां १६ मात्रानो अडिल्ला छे जेनुं लक्षण आज उद्धरण पं. ७ - १०. मां निरूपित क छे.
२३ - २४ आ गीतमां शशांकवदना नामनी चतुष्पदी छे. छं. शा. ४२ (अ)मां चौ दः शशांकवदना । ए लक्षण बरोबर बेसे छे. ४+४+२= १०x४=४० आखी कडीमां कुछ मात्राओ. (पी.) भणहिने स्थाने भण्णह वांचे छे. ते छन्दोदृष्टिए यथार्थ छे. आपणे पण भण्णइ वांचवं पडशे, जो के तेथी व्याकरणदृष्टि अर्थान्तर तो नहि ज थाय.
१५-२६. आमां पण उपरनो ज छन्द छे. (पी.) एक्केक्कम = भन्योन्यं । दे. ना. १.१४५. घांची, वर्धित = वघेलो एम अर्थ करवा मागे छे. (रं) नी समजावट दूर कृष्ट छे. एक्कक्कम = एकक्रम युगपद् ए अर्थ करे छे. प्रो. पीशलने अनुसरी " जेमां प्रेमरस अन्योअन्यने ( पोते अने पोतानी प्रियतमानी अन्योअन्यता ) लीधे वध्यो छे, ते कामरसथी हंसयुवा सरोवरमां खेळे छे. " (रं) वियोगदशा सूचववा वर्धित = कपाई गएलो, एम अर्थ करे छे. २७-२८ ( रं. ) गजो भ्रमतीति शेषः । १४ मात्रानी द्विपदी; प्रास मळतो नथी; एटले भ्रष्ट होवानो सम्भव छे. आ उक्ति नथी परन्तु मात्र वर्णनात्मक ध्रुवा छे.