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४. टिप्पणः- . . . .
१-४. आ बे दुहा साथे लई वाक्यार्थ करवानो छे. सरखावो ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन ॥ भ. गी. ४. ३७.... . .. ३. अच्छहि-सन्ति । छापेली आवृत्तिमा अहि टीका तिष्ठन्ति ।
५. णियंति-पश्यन्ति । सि. हे. ८।४।१८१ । छापेली आवृत्तिनी छाया निर्यान्ति भने टीकाकारतुं निर्गच्छन्ति अस्वीकार्य छे.... ... ६. तिण्णि आचार्य, उपाध्याय अने साधु ए त्रण.
____५. पंचगुरु अर्हत, सिद्ध, गणधर, उपाध्याय अने साधु, ए पांचने भट्ट प्रभाकर नमस्कार करे छे अने ते योगीन्द्रने अरज करे छे. सिरिजोइ. न्दजिणाउ "श्रीयोगीन्द्रजिनः" एम टीकाकार अने छायाकार भेगुं ले छे, ते तद्दन खोटुं छे. अमारी संस्कृतछाया जुओ.
११. चउगइ नरक, तिर्यक्, मनुज, अने देव ए चार गति.
१३-२२ आत्माने त्रण प्रकारनो गणावे छः मूढ, विचक्षण अने परब्रह्म. वस्तुतः आत्मा अभेद्य छ परन्तु अज्ञानने लीधे ज विभकतानो अध्यास , थाय छे. १९-४४ सुधी परमात्माने ज लक्षित करी विवेचन करेलुं छे.
" ३७. कोइनी छाया कंचित् करी छे ते सुधारी कश्चित् करो, स्फुरति-संवित्तिमायाति.
३९-४० मुक्कह-एकवचनमां वपरायुं छे; आ पण जोइन्दुनी अर्वाचीनतानी नीशानी छे. "अनंत गगनमा एक नक्षत्रनी माफक त्रणे भुवन जे मुक्तना केवलज्ञानरूपी पदमा बिंबित थयां छे, ते अनादि परमात्मा छे." अनंत गगनमा विकल्प पेदा करतो सूर्य ए परम सत्व जे गगन तेनी यथार्थताने हानि करी शकतो नथी, तेवी ज रीते, त्रणे य भुवननुं अस्तित्व केवल प्रतिबिंबात्मक अने अयथार्थ होई अनंत केवलज्ञानना सत्त्वन अबाधक नथी. आम जे समजे छे ते परमात्मा ज छ; आ दुहाना स्पष्टार्थ माटे जुओ सदर उद्धरण. दुहा. ३३. ....... ५९-६० आ श्लोक चण्डना प्रा. ल. मां छे.
१०. एक म्यानमां बे खांडां क्याथी रहे ? .., . १.३-१०४. या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥ भ.गी. २.६९