________________
६१
८१. (१०) तृणु (प० ) कोमलवउने बदले कोमलंगु.
८५. णरुने बंदले (पं०) पुरु
८८. आपिक्खिविने बदले (प०) आवेक्खिवि । आ पंकि पछी ( प ० ) नीचेनी पंक्ति वांचे छे:
हाँ पर विणु हियउल्लउं भुल्लउं को रक्खइ मेरउ कडउलउ छाररासि यउ पविलोयउ एम बंधुवग्र्गे संसोइउं ॥
९०. परं विणु सुण्णु हिमावलि माणिउ = तारा विना हिमगृहे आनन्द करवों ते शून्य छे, आम अर्थ थाय. पंजलीहि मीणावलि माणिड ( पं० ) आ बन्ने य पाठांतरो अने तेमाथी नीतरता अर्थं सुद्धां अस्पष्ट छे. ९२. छायामां नैमित्तिकैः वांचो.
९४-९६.विजयनगरना नंदनवनने रामायण साथै सरखान्युं छे. श्लेषात्मक सरखामणी छैः—त्यां नंदनवन केवु दीठु ? मने जेवुं रामायण गमे छे तेवुं ! ज्यां भयङ्कर रजनीचरो ( राक्षसो) फरे छे; चारे य दिशामां बगलाना ( लक्ष्मणना ) स्वर ज्यां फछळे छे; ज्यां शीत जवाने लीधे ( सीताना विरहने लीधे) पूंछडु हलवतो वानर, (हनुमान) पोतानी स्त्री साथै (राम साथे ) आकाश ओळंगे छे.
९७-९९, उपवनने भारत साथै सरखान्युं छे: - ज्यां मोर ( = शिव ) रोमांचित थई नाचे छे; ज्यां अर्जुन वृक्षने ( = अर्जुन ) घडाथी ( = द्रोणथी ) पाणी सिंचवामां आवे छे ( = स्नातक तरीके संत्रित कराय छे. ); ते ज अर्जुन ज्यां नोळीआथी ( = नकुल ) सेवायलो छे; - भाइ कोने प्रिय नथी होतो ? आ प्रमाणे वेलोथी ढंकायलं अने रविना तेजने ढांकर्तुं उपवन भारतसमुं शोभे छे.
१००. सोहइने बदले णिवडर वांचो. जंड उपर श्लेष छे. डलयोरमेदः ए नियम प्रमाणे. ' जडने अनंगथी कोण प्रकटावे ? '
१०२. (प० ) महुर्थेभहिं - मधुबिन्दुभिः पाठ आपे छे. २१५. (प०) रुहचुहंति.
११६. (प०) गोंदि. मूळ पाठे गोंजि- मंजयः । दे. ना. २.९५. गच्छागोंटीगोडींगोजीओ मंजरीए य । (प०) नो पण अर्थ ' मंजरी ' हवा से छे.
११७. पहिल [लाहल] म्लेच्छनी एक जाति सि. है. ८/१/२५६.