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________________ ૨૪ उपरनी गाथाओ हरिवंशपुराणनी रचना पर घणो प्रकाश नाखे छे. तेनो सार आ प्रमाणे छे:-१३ संधि यादवकांडना, १९ संधि कुरुकांडना, अने ६० संधि युद्धकांडना एम ९२ संधिओ थाय. (१) बुधवार, श्रीज, फाल्गुन नक्षत्र, शिव नामनो योग-आ समये युद्धकांड पूरो करवामां आव्यो. (२) छ वर्ष, त्रण मास अने अगीआर दिवस स्वयंभूने ९२ संधि पूरी करता थया, (३) रविवार, दशमी, गल नक्षत्र अने अगीआरमो चांद्रमास एटले भाद्रपदमा उत्तरकांड शरु को. (४) तेजस्वीने मानभंग करतां मृत्यु वहावं लागे छे; मृत्यु तो तत्क्षण दुःख भापे छे ज्यारे मानभंग तो हमेश दुःख दे छे. (५) ___आ गाथाओ त्रिभुवन स्वयंभूए रची होय एम लागे छे. कारण के ९२ संधि पूरी कर्या पछी चमुर्मुखनो काळ थयो होवो जोईए; अने पोताना पितानी कीर्ति अधुरी न रहे एटले थोडा समय पछी त्रिभुवने उत्तरकांडनो आरंभ कयों होवो जोईए. प्रन्थनी प्रशस्ति परथी एम लागे छे के १०९ संधि पछीना संधिओ त्रिभुवने नहि रच्या होय; कारण के त्यार पछीना अधुरा अन्थनो उद्धार यश-कीर्तिभट्टारके करेलो मालम पडे छे. एवो उल्लेख संधि १०९ने भन्ते छे: इह जसकित्तिकरणं पव्वसमुद्धरंणरायएक्कमणं कारायस्तुवरियं पयइत्थं अक्खियज्जइणा ॥ १ ॥ ते जीवंति य भुवणे सज्जणगुणगणह रायभावस्था परकव्वकुलं वित्तं विहडियं पि जे समुद्धरहिं ॥ २ ॥ एटले यशःकीर्तिए संधि १०२ पछीना भागनो सोळमा सैकामा उद्धार को. आ वातनो उल्लेख प्रन्थने अन्ते पण छे:सुणि संखेषु सुत्तु अवहारिउ विउसे सयंभे महि वित्थारि पद्धडियाछंदें सुमणोहरु भवियणजणमणसवणसुहंकरु जसपरसेसि कविहिं जं सुण्णउं जं उव्वरिउ किंपि सुणियाणहों तं जसकीर्तिमुणिहि उद्धरियउ णिएवि सुत्तु हरिवंसच्छरियउ णियगुरुसिरिगुणकीत्तिपसाएं किउ परिपुण्णु मणहो अणुराएं ॥ ____ा हरिवंशपुराणनी हायपोथी भांडारकर ओरीएन्टल रीसर्च इन्स्टीट्युट, पूना, नं. ११२० सने १८९४-९७ छे. हाथपोथीने छेडे: इति हरिवंशपुराणं समाप्तं । ग्रन्थ संख्या १८००० । संवत १५८२ वर्षे
SR No.023391
Book TitleApbhramsa Pathavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Chimanlal Modi
PublisherGujarat Varnacular Society
Publication Year1935
Total Pages386
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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