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________________ ११ प्रियताने ज तोषी छे. बाकी सातमा सैकाना दण्डीने जे अर्थ सूझ्यो, ते शुं नवमा सैकाना रुद्रटने न सूझे ? बारमा सैकाना वाग्भटनो अभिप्राय दण्डी अने रुद्रटना अभिप्रायनी वचटनो छे. ते रुद्रटनी माफक बधी देश्यभाषाओने अपभ्रंश कहेतो नथी; तेम पश्चिममां वसता आभीरादिनी भाषाओने ज अपभ्रंश तरीके उल्लेखतो नथी. तेने मते तो कोई पण देश्यभाषा शुद्धस्वरूपे पहोंची होय, एटले के साहित्यमां वपराई होय, तेने अपभ्रंश कहेवी, बीजीने नहि. आ. प्रकरनां शास्त्रप्रिय आलंकारिकोनां दलीली विवेचनो जवा दई, मुद्दा पर आवीए. आगळ पाछळना पूरावा परथी एम आपणे कही शकीए के केटलाक जीवा अपवादों बाद करतां, हेमचंद्रे जे भाषानी चर्चा सिद्ध है मना आठमा अध्यायने छेडे करी छे, ते भाषाने अपभ्रंश समजवी. ' बीजा प्राकृत वैयाकरणोने पण आज अभिप्रेत छे. आ भाषामां ज आर्यावर्तना पश्चिम दिशाना देशोनी अर्वाचीन भाषाओनुं मूळ विद्वानो जुवे छे. आ बाबतमां राजशेखर काव्यमीमांसामां कहे छे, के “ मारवाड, टक अने भादानक प्रदेशोमां भाषाप्रयोगो अपभ्रंश मिश्र होय छे.”” अपभ्रंश कविओनुं ते पश्चिममां स्थान स्थापे छे; " अने जणावे छे के " सुराष्ट्र अने त्रवण आदि प्रदेशना जनो सौष्ठव अपने संस्कृत वचनोने पण अपभ्रंशवत् बोले छे. """ भोज सरस्वतीकंठाभरणमां कहे छे के << गुर्जरो पोताना अपभ्रंशथी संतोषाय छे; नहि के बीजाथी ” जो सिद्ध हैमनी अपभ्रंश साथे गूजराती सरखावीए तो मालम पडशे के बन्ने वच्चे मा - दीकरीनो संबंब छे. मारवाडी तथा पश्चिम हिंदुस्तानीने पण अपभ्रंशनी साथे आ प्रकारनो ज संबंध छे. आथी जे अपभ्रंशनी वात भोज अने राजशेखर करे छे, ते अपभ्रंश सिद्धहैमनुं ज अपभ्रंश छे, ए वात दीवा जेवी चोक्खी छे. विक्रमना ७. वाग्भट - काव्यालंकार. २. ३. अपभ्रंशस्तु यच्छुद्धं तत्तद्देशेषु भाषितम् । ८. हेमचंद्र - सि. हे. ८ ४. ३२९ - ४४६; मार्कण्डेय - प्राकृतसर्वस्व १७ १-७८. लक्ष्मीधर - षड्भाषाचन्द्रिका ( सं . कमळाशंकर प्राणशंकर त्रिवेदी) पृष्ठ २६४ - २६८. इ. मां अपभ्रंशनी चर्चा करवामां आवी छे. ९. राजशेखर - का. मी. पान. ३४. १०. राजशेखर - का. मो. पान. ५४-५५ ११. राजशेखर - का. मी. पान. ३४.१२. भोजदेव - सरस्वतीकण्ठाभरण. २. १३.
SR No.023391
Book TitleApbhramsa Pathavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Chimanlal Modi
PublisherGujarat Varnacular Society
Publication Year1935
Total Pages386
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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