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________________ चउमुहु सयंभु ] जउ जउ सीमंतिणि संचरइ तर तउ चडुयार सयई करइ एक्कहिं दिणि' णयणानंदणिए णिन्भच्छिउ दुमयहो णंदणिए ॥घत्ता ॥ " जे एत्थु करंति पुरि गंधव्व पंच महु पेसण जइ जाणंति परं ते ति पाव जम- सासण 11 " यत्र यत्र सीमंतिनी संचरति तत्र तत्र चाटुकारशतानि करोति एकस्मिन्दिने नयनानंदिन्या निभर्सितो द्रुपदस्य नंदिन्या ॥घत्ता ॥ “ येऽत्र कुर्वन्ति पुरि गान्धर्वाः पञ्च मम प्रेषणं यदि जानन्ति त्वां ते नयन्ति पाप, यमशासनं ॥ ४१ ( ७ ) जोएप्पिणु दोवइ - मुह· कमलु पभणइ णव णाय सहास - बलु "हउं सुहड - सरहिं पडिवज्जियउ पई सुंदरि णवर परज्जियउ पडिमल्ल ण हरि-हर - चउ वयण पंचाहिं गंधविवहिं का गणण छु करि पसाउ जीवावि मई भुंजावमि वसुमइ' - अध्धु पई " अवहेरि करिवि गय दुमय सुय तहो णवमी कामावत्थ हुय ६५ णिय-सस कहिज्जइ कइकइहे " मणु रंजहि आहे तीमइहे जहिं अच्छमि हउं एयग्ग- मणु तर्हि पट्ठवि लेवि समालहणु” स वि पेसिय तेण वि धरिय करे रइ-लालसेण एक्कंत - घरे १ दिह । २. पभणई । ३. बसुमई । ४. पइ । ( ७ ) दृष्ट्वा द्रौपदीमुखकमलं प्रभणति नवनागसहस्रबलः अहं सुभटशतैः प्रतिपन्नस्त्वया सुंदरि केवलं पराजितः प्रतिमल्ला न हरिहरचतुर्मुखाः पंचानां गांधर्वाणां का गणना शीघ्रं कृत्वा प्रसादं जीवय मां भोजयामि वसुमत्यर्थं त्वां " अवधीरणां कृत्वा गता द्रुपदसुता तस्य नवमी कामावस्था भूता निजस्वत्रे कथ्यते कैकेय्यै "मनो रञ्जय अस्याः स्त्रियः यत्राऽस्म्यहमेतद्गमनास्तत्र प्रेषय लात्वा समालभनं " साऽपि प्रेषिता तेनाऽपि धृता करे रतिलालसेनैकान्तगृहे ६०
SR No.023391
Book TitleApbhramsa Pathavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Chimanlal Modi
PublisherGujarat Varnacular Society
Publication Year1935
Total Pages386
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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