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श्रीदेहस्थितिस्तवः
८९ जोअण बार बिइंदिअ, पजसंखे तिइंदि गुम्मि कोसतिगं। चउरिदि भमरु जोअण, सन्निअरखगा धणुपुहुत्तं ॥८॥ गब्भभुयमुच्छचउपय, कोसपहुत्तियरचउपय छक्कोसा। मुच्छुरग अग जोअणपुहुत्त गब्भयनर तिकोसा ॥९॥ सनिअरमच्छगब्भय-उरगा जोअणसहस्स तरु अहिअं। कोसपुहुत्तं तिरिए, तणूत्तरविउव्वि उक्कोसा ॥१०॥
पङ्कप्रभा
धनुष्य हस्त अगुल
|३१/३६/४१/४६/५२/५७/६२ ११२ | ३ | 0 | १ | २ | | 0 |२०१६/१२/८/४ | ०
धूमप्रभा
तमःप्रभा तमस्तमःप्रभा प्रतर | १ | २| ३ | ४ | ५ |प्रतर | १ | २ | ३ | प्रतर |१ | धनुष्य ६२/७८/९३१०९/१२५/धनुष्य १२५/१८७/२५० धनुष्य ५०० हस्त |२||३| १ | ० हस्त | ० | २ | ० हस्त ० . अङ्गुल | ° १२ ० | १२ | ० अङ्गुल ° | 0 | ° अङ्गुल ० १. पर्याप्तशड्खस्योत्कृष्टावगाहना । अपर्याप्तानां तु सर्वेषां जघन्योत्कृष्टयो
द्वयोरप्यवगाहनयोरङ्गुलासङ्ख्येयभागमात्रत्वेन वक्ष्यमाणत्वात् ।
एवमन्यत्राऽपि पर्याप्तविशेषणं ज्ञेयम् ॥८॥ २. गर्भजभुजगानां प्रोक्तत्वादत्र भुजगा अपि सम्मूच्छिमा ज्ञेयाः ॥ ९ ॥ ३. क्रोशपृथक्त्वमेव ॥ १० ॥