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________________ ७८ प्राकृत व्याकरण देवा देवा उपर्युक्त नियमों के अनुसार अकारान्त पुंल्लिङ्ग देव शब्द के रूपएकवचन बहुवचन प्रथमा देवो द्वितीया देवं देवे, देवा तृतीया देवेण, देवेणं देवेहि-हि-हिं पश्चमी / देवत्तो, देवाओ, देवाउ, देवाहि देवाहितो, देवासुंतो । देवाहित्तो इत्यादि देवेहितो, इत्यादि षष्ठी देवस्स देवाण, देवाणं सप्तमी देवे, देवेम्मि देवेसु, देवेसुं संबोधन देव, देवो कुल अदन्त शब्दों के रूप उक्त देव शब्द के समान ही प्राय: चलते हैं। ( १५ ) इदन्त ( इ से अन्त होनेवाले ) और उदन्त ( उ से अन्त होनेवाले ) पुंल्लिङ्ग शब्दों का सु, जस् , भिस् भ्यस और सुप् विभक्तियों के पर में रहने पर अन्त ( इ और उ ) का दीर्घ होता है। विशेष-हेमचन्द्र के मत से शस् ( द्वितीया-बहुवचन ) के लुक् हो जाने पर भी इदन्त-उदन्त का दीर्घ होता है । (१६ )इदन्त और उदन्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से पर में आनेवाले जस् के स्थान में ओ और णो आदेश होते हैं। कहींकहीं जस् का लुक भी हो जाता है ।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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