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________________ चतुर्थ अध्याय (५) पुल्लिङ्ग में वर्तमान ह्रस्व अकारान्त शब्द के आगे आनेवाली प्रथमा के एकवचन की 'सु' विभक्ति के स्थान में 'ओ' आदेश होता है। जैसे :-देवो, हरिअंदो, हदो ( देवः, हरिश्चन्द्रः, हृदः) विशेष—(क) मागधी में सु के पर में रहने पर अन्त के अ का ए हो जाता है और सु का लोप हो जाता है । जैसे :- रुक्खे, एशे, मेशे ( वृक्षः, एषः, मेषः ) (ख) अपभ्रंश में सु और अम् के पर में रहने पर अन्त के अ के स्थान में उ आदेश माना जाता है। (६ ) जस् , शस् , ङसि और आम इन विभक्तियों के पर में रहने पर पुल्लिङ्ग शब्द के अन्त्य अ के स्थान में आ आदेश होता है तथा जस् और शस् विभक्तियों का लोप होता है। जैसे :-देवा, णउला ( देवाः, देवान् , नकुलः,. नकुलान् ) (७) अदन्त ( अ से अन्त होनेवाले ) शब्द से पर में आनेवाले अम् के अकार का लुक हो जाता है । जैसे :देवं, णउलं ( देवं, नकुलम् ) (८) ह्रस्व अकारान्त शब्द से पर में आनेवाले टा ( तृतीया के एकवचन ) और आम् ( षष्ठी के बहुवचन ) के स्थान में ण आदेश होता है । जैसे :-देवेण, देवाण, अथवा देवाणं ( देवेन, देवानाम् ) विशेष-अपभ्रंश में टा के स्थान में ण्ण और अनुस्वार होते हैं। तथा टा के पर में रहने पर अ का नित्य
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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