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________________ में चार सौ चौबीस सूत्रों द्वारा महाराष्ट्री का विचार किया है। अन्य तीन प्राकृतों का विचार एक-एक परिच्छेद में क्रम से १४, १७ और ३२ सूत्रों द्वारा किया है। इसी प्रकार सब वैयाकरणों ने पहले महाराष्ट्री का उल्लेख किया है। महाराष्ट्री में प्रवरसेन-विरचित सेतुबन्ध नामक ग्रन्थ प्रसिद्ध है। इस पुस्तक के संबन्ध में बाण ने हर्षचरित में लिखा है 'कीर्तिः प्रवरसेनस्य प्रयाता कुमुदोज्ज्वला। सागरस्य परं पारं कपिसेनेव सेतुना ॥' अर्थात् कुमुद के समान उज्ज्वल प्रवरसेन का यश सेतुबन्ध के द्वारा समुद्र के पार तक विख्यात हो गया जैसे वानरों की सेना सेतु (पुल) के द्वारा समुद्र पार कर विख्यात हो गई थी। सेतुबन्ध संस्कृत नाम है। प्राकृत में इसे रावणवहो या दहमुहवहो कहते हैं। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्री में हाल की सतसई तथा वजालता और गउडवही आदि काव्य-ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। ___ प्राकृत के कितने भेद और उपभेद हैं, इस संबन्ध में भी एक मत नहीं है। वररुचि के अनुसार प्राकृत के चार भेद हैं। महाराष्ट्री, शौर. सेनी, मागधी और पैशाची। इन्हीं चारों का उल्लेख प्राकृत-प्रकाश में हुआ है। हेमचन्द्र ने इन चारों के अतिरिक्त आर्ष, चूलिकापैशाची और अपभ्रंश को भी प्राकृत ही के अन्तर्गत माना है । अर्थात् महाराष्ट्री, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, आर्ष, चूलिकापैशाची और अपभ्रंश ये सात भेद उन्हें अभिप्रेत हैं। त्रिविक्रम हेमचन्द्र की तरह उपर्युक्त भेदों में से आर्ष के अतिरिक्त छ को मानते और उन्हीं का उल्लेख करते हैं। इन वैयाकरणों के अतिरिक्त मार्कण्डेय, जो वररुचि के अनुयायी हैं, प्राकृत के प्रधानतः चार विभाग करते हैं-भाषा, विभाषा, अपभ्रंश और पैशाच । अब इनके उपभेदों के साथ प्राकृत को सोलह भागों में विभक्त करते हैं। वे सोलह भेद इस प्रकार हैं-भाषा के पाँच भेद-महाराष्ट्री, शौरसेनी, प्राच्या, आवन्ती और मागधी (मार्क० १-५); विभाषा के पाँच भेद-शाकारी, चाण्डाली, शाबरी, आभीरिका और टक्की; अपभ्रंश
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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