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________________ प्रथम अध्याय प्राकृत परिट्ठिअं (परि आदेश) । प्रतिष्ठितम् पइडिअं (परि का अभाव) (४८) त्यद् आदिक सर्वनामों से पर में रहनेवाले अव्ययों तथा अव्ययों से परमें रहनेवाले त्यदादि के आदि स्वर का लुके विकल्प से होता है। जैसे संस्कृत अम्हेव्व(त्यदादि से पर अव्यय के आदि वयमेव स्वर का लुक्) । अम्हे एव्व (लुक् का अभाव) वयमेव जइहं (अव्यय से पर में आने-) वाले त्यदादि के आदि स्वर का लुक यद्यहम् जइ अहं (लुक का अभाव । (४६) पद से पर में रहनेवाले अपि अव्यय के आदि अ का लुक विकल्प से होता है । जैसेप्राकृत संस्कृत तं पि; तमवि तमपि किं पि; किमबि किमपि केण वि; केणावि केनापि कह पि; कहमवि कथमपि (५०) पद से पर में रहनेवाले इति अव्यय के आदि इकार * त्यद्, तद्, यद्, एतद्, इदम् , अदस् , एक, द्वि, युष्मद्, अस्मद्, भवतु किम् ये ही त्यदादि सर्वनाम माने गये हैं।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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