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________________ २०६ . प्राकृत व्याकरण अकारान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से पर. में सु विभक्ति आई हुई हो । जैसे :-जो', सो ( यः, सः)। विशेष—पुंल्लिङ्ग में कहने से 'अङ्गहिं अङ्गु न मिलउ हलि' ( अङ्गः अङ्गं न मिलितं सखि ) में नपुंसक अङ्गु और मिलिउ में ओ नहीं हुआ। (५) अपभ्रंश में टा विभक्ति के आने पर शब्द के अन्तिम अ के स्थान में ए हो जाता है । जैसे:-पवसन्तेण ( प्रवसता), नहेण ( नखेन)। (६) अपभ्रंश में शब्द के अन्त्य अकार और ङि ( सप्तमी एकवचन ) के स्थान में इकार और एकार होते हैं । जैसे :तलि घल्लइ, तले घल्लइ ( तले क्षिपत्ति)। . (७ ) अपभ्रंश में शब्द के अन्त्य अ के स्थान में, मिस् (तृतीया के बहुवचन ) के पर में रहने पर, एकार आदेश विकल्प १. अगलिअ नेह-निवडाहं जोअण-लक्खु वि जाउ। वरिस-सएण वि जो मिलइ सहि सोक्खहं सो ठाउ ॥ ( अगलितस्नेहनिर्वृत्तानां योजनलक्षमपि जायताम् । वर्षशसेनापि यः मिलति सखि सौख्यानां स स्थानम् ॥) २. जेमहु दिण्णा दिअहडा दइएँ पवसन्तेण | ताण गणन्तिएँ अङ्गुलिउ जजरिआउ नहेण ।। ( ये मम दत्ताः दिवसाः दयितेन प्रवसता । तान् गणयन्त्याः अङ्गुल्यः जर्जरिताः नखेन ॥) ३. सायरु उप्परि तणु धरइ तलि धल्लइ रयणाई। सामि सुभिच्चु वि परिहरइ संमाणेइ खलाई ॥ ( सागरः उपरि तृणानि धरति तले क्षिपति रत्नानि । स्वामी सुभृत्यमपि परिहरति संमानयति खलान् ॥)
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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