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________________ अष्टम अध्याय [शौरसेनी] (१) 'प्रकृतिः संस्कृतम्" इस उक्ति के अनुसार शौरसेनी में जितने भी शब्द आते हैं, उनकी प्रकृति संस्कृत है। (२) शौरसेनी में अनादि में वर्तमान असंयुक्त त का द आदेश होता है । जैसे :-मारुदिणा मन्तिदो (त का द); एदाहि, एदाओ ( एतस्मात् ) - विशेष-( क ) संयुक्त होने के कारण अजउत्त और सउन्तले में त का द नहीं हुआ। ( ख ) आदि में होने के कारण 'तधा करेध जधा तस्स राइणो अणुकम्पणीआ भोमि' में तधा और तस्स के तकारों का द नहीं हुआ। (३) लक्ष्य के अनुरोध से शौरसेनी में वर्णान्तर के अधः (बाद में) वर्तमान त का द होता है। जैसे :-महन्दो, निश्चिन्दो, अन्दे-उरं ( महान्तः, निश्चिन्तः, अन्तःपुरम् )। विशेष-उक्त नियम संयुक्त त के विषय में क्वाचित्क है । (४) शौरसेनी में तावत् शब्द के आदि तकार का दकार विकल्प से होता है । जैसे :-दाव, ताव ( तावत्)। (५) शौरसेनी में इन्नन्त शब्द से आमन्त्रण ( सम्बोधन की प्रथमा विभक्ति ) के सु के पर में रहने पर पूर्व के 'इन्' के. १. देखो-हेम० १. १. की वृत्ति तथा वर० १२. २. ..
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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