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________________ - पश्चम अध्याय १०६ णइ-बोलीणा गइ वसन्त-उउ-लच्छी ( वसन्त ऋतु की __शोभा बीत ही गई) चेअ--स्फुटा चेअ गिम्ह-सिरी ( ग्रीष्म की शोभा स्फुट ही मालूम पड़ती है।) चिअ-ते चिअ धन्ना ( वे ही धन्य हैं ! ) च-सच सीलेण ( स्वभाव से अच्छा-सत्-ही) (१०) दो में एक के निर्धारण तथा निश्चय अर्थों में 'बले' अव्यय का प्रयोग होता है। निद्धारण में जैसे:-लयाग नोंमालिआ बले रम्मा ( सभी लताओं में नवमल्लिका अथवा नवमालिका मन को आनन्द देनेवाली है । ); निश्चय में जैसे :-बले ते मयणबाणा (निश्चय ही वे मदन (कामदेव),, के बाण हैं ।) . (११) 'किल' के अर्थ में किर, इर, हिर अव्ययों का विकल्प से प्रयोग होता है । पक्ष में किल ही प्रयुक्त होता है। जैसे:किर-जा किर मल्ली (संभावना करता हूँ कि जो मल्ली है) इर-जा इर जवा ( संभावना करता हूँ कि जो जपा है) हिर--सुत्ते जणम्मि जो हिर सद्दो चीरीण ( लोगों के ___सो जाने पर जो झींगुरों का शब्द ) पक्ष में किल-एवं किल तेन सिविणए भणिआ । विशेष-किल शब्द के अर्थ प्रसिद्ध, संभावना आदि हैं।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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