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________________ ( १० ) नाटकों में सूत्रधार का पाठ सबसे पहले आता है । सूत्रधार की भाषा संस्कृत है, परन्तु महाकवि भास-प्रणीत 'चारुदत्त' में यह शौरसेनी में बोलता है । 'मृच्छकटिक' में भी नटी के साथ बातचीत करते समय सूत्रधार ने शौरसेनी का ही व्यवहार किया है । नदी की भाषा सब नाटकों में शौरसेनी ही है । पर यह स्मरण रहे कि शौरसेनी गद्य की भाषा है । इसलिए नटी को जहाँ माने की आवश्यकता पड़ी है, वहाँ गान महाराष्ट्री भाषा में है । यथा शाकुन्तल में- 'नटी गायति ईसीसि चुम्बिआई भमरेहिं सुउमारकेसरसिहाई । ओदंसन्ति दअमाणा पमदाओ सिरीसकुसुम्नाणि ॥' पारिपार्श्वक की भाषा संस्कृत में ही पाई जाती है । इसका पाठ विक्रमोर्वशीय, मालविकाग्निमित्र, वेणीसंहार तथा माधव भट्ट-रचित सुभद्राहरण आदि नाटकों में आया है । विदूषक की बोली सब नाटकों में एक सी ही है । इसकी भाषा चन्द्र और त्रिविक्रम के अनुसार शौरसेनी तथा मार्कण्डेय के अनुसार प्राच्या है । इसका पाठ मृच्छकटिक, अभिज्ञानशाकुन्तल, विक्रमोर्वशीय, मालविकाग्निमित्र आदि नाटकों में आया है । मालविकाग्निमित्र में इसका पाठ प्रधान रूप से आया है और प्रत्येक अङ्क में है । सूत की बोली संस्कृत में पाई जाती है । जहाँ-जहाँ सूत का पाठ है, वहाँ वह संस्कृती बोलता पाया जाता है । अभिज्ञानशाकुन्तल, विक्रमोर्वशीय, प्रतिमा, वेणीसंहार तथा कंसवध आदि नाटकों में सूत का पाठ पाया जाता है । राजा की भाषा अभिज्ञानशाकुन्तल, विक्रमोर्वशीय, प्रतिमा, मुद्राराक्षस, मालविकाग्निमित्र, वेणीसंहार, कर्णसुन्दरी तथा कंसवध आदि नाटकों में संस्कृत ही पाई जाती है। केवल विक्रमोर्वशीय के चौथे अङ्क में पुरूरवा नामक राजा ने उर्वशी के लिए विक्षिप्तं हो कर हंस, भौंरे तथा
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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