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________________ प्राकृत व्याकरण पव एकवचन बहुवचन सप्तमी राये, रायम्मि, राइम्मि राईसु, राईसुं, राएसु, राएसुं संबोधन हे राया, राय राया, रायाणो, राइणो आत्मन् शब्द के रूप :प्रथमा अप्पा, अप्पाणो अप्पाणा, अप्पाण्णो, अप्पा द्वितीया अप्पाणं, अप्पं अप्पाणे, अप्पणो तृतीया अप्पाणेण, अप्पणा अप्पाणेहिं, अप्पेहिं अप्पाणाओ, अप्पणो अप्पाणाहितो, अप्पाहिंतो, " । अप्पाओ, अप्पादो, इ० इत्यादि षष्ठी अप्पाण्णस्स, अप्पणो अप्पाणाणं, अप्पाणं सप्तमी अप्पाणम्मि, अप्पे अप्पाणेसु, अप्पेसु संबोधन हे अप्पं, इत्यादि विशेष-हेमचन्द्र ( ३. ५६-५७.) के अनुसार आत्मन् शब्द के दो प्राकृत रूप अप्प और अप्पाण होते हैं। इनमें अप्प के रूप राजन् शब्द जैसे चलते हैं। और 'अप्पाण' के वच्छ अथवा देव शब्द के अनुसार | तृतीया के एकवचन में उसके दो और अधिक रूप होते हैं-'अप्पणिआ' और 'अप्पणइआ' (४२) प्राकृत-कल्पलतिका के अनुसार 'भवत्' और 'भगवत्' के अन्तिम तकार के स्थान में सु विभक्ति के पर में रहने पर अनुस्वार किया जाता है। यह नियम यहाँ भी गृहीत है । जैसे:-भवं ( भवान् ), हे भवं (हे भवन् ), भअवं ( भगवान् ), हे भअवं ( हे भगवन् ) (४३) प्राच्या में भवत शब्द के स्त्रीलिङ्ग में भोदी यह रूप होता है।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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