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________________ 16. गिरनार महातीर्थ की मिट्टी को गुरुगम के योग से तेल और घी के साथ मिलाकर अग्नि में गरम करने से सुवर्णमय बन जाती है। 17. भद्रशाला आदि वन में सर्व ऋतुओं मे सर्व जाति के फूल खिलते हैं। जल और फल सहित भद्रशाला आदि वन से घिरा हुआ यह रमणीय गिरनार पर्वत इंद्रों का क्रीडापर्वत है | 18. गिरनार महातीर्थ में हर एक शिखर के ऊपर जल, स्थल और आकाश में घूमने वाले जो जीव होते हैं, वे सब तीन भव में मोक्ष प्राप्त करते है । 19. गिरनार महातीर्थ पर वृक्ष, पाषाण, पृथ्वीकाय, अपकाय, वायुकाय और अग्निकाय के जीव हैं वे व्यक्त चेतनावाले नहीं होते हुए भी इस तीर्थ के प्रभाव से कुछ काल में मोक्ष प्राप्त करने वाले होते हैं। 20. गिरनार महातीर्थ पर श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा के अवसर पर, प्रभुजी के स्त्रात्राभिषेक के लिए तीनों लोक की नदियाँ, विशाल गजपदकुंड में आकर समाई थीं । 21. गिरनार महातीर्थ में 'मोक्षलक्ष्मी' के मुख रूप रहे हुए 'गजेन्द्रपद' नामक विशाल कुंड के पवित्र जल के स्पर्श से ही अनेक जन्मों के पापों का नाश होता है । 22. जगत में कोई भी ऐसी औषधि, सुवर्णादि सिद्धियाँ और रसकूपिकाएँ नहीं, जो गिरनार तीर्थ पर न मिलें । 23. सहसाम्रवन में नेमिनाथ भगवान के दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक हुए थे। 24. सहसाम्रवन में करोडों देवताओं ने श्री नेमिनाथ भगवान के प्रथम और अंतिम समवसरण की रचना की थी । प्रभुजी ने यहाँ प्रथम और अंतिम देशना (प्रवचन) दी थी । 60 त्रितीर्थी
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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