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________________ रैवतगिरिराज गिरनार महातीर्थ यह तीर्थ गुजरात प्रान्त के जूनागढ़ जिले की पावनभूमि पर स्थित है। चौदह राजलोक में लोकोत्तर ऐसे जिनशासन के तीन भुवन में सर्वोत्कृष्ट तीर्थ रुप शत्रुजय तीर्थ और गिरनार महातीर्थ की गणना होती हैं। भारत भर के विविध धर्म संप्रदायों में अपने अपने धर्मग्रथों में अनेक प्रकार से गिरनार महातीर्थ की महिमा का वर्णन किया गया है। जैन शासन में दिगंबर और श्वेताम्बर धर्म संप्रदायों के अनेक भक्तजनों की श्रद्धा का प्रतीक यह गिरनार गिरिवर बना हुआ है। ऐसे महान जगप्रसिद्ध श्री रैवतगिरिराज गिरनार महातीर्थ के इतिहास और वर्तमान में विराजित तीर्थकर भगवंत श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा के इतिहास पर हम रोशनी डालते है। ई. सन् की प्रथम शताब्दी में भी इस क्षेत्र में जैन धर्म भलीभांति फूलता-फलता रहा। षट्खण्डागम के टीकाकार वीरसेनाचार्य के अनुसार वीर निर्वाण से ६८३ वर्ष पश्चात् श्रुतज्ञानी आचार्यों की अविच्छिन्न परम्परा में धरसेनाचार्य हुए। वे गिरनार की चन्द्रगुहा में रहते थे। वहीं उन्होंने पुष्पदन्त और भूतबलि नामक शिष्यों को बुलाकर श्रुतज्ञान से परिचित कराया, जिसके आधार पर उन्होंने द्रविड देश में जाकर षट्खण्डागम की सूत्र रूप में रचना की। जूनागढ़ के समीप प्राचीन जैन गुफाओं का पता चला है, जो आज बाबाप्यारा मठ के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनमें से एक गुफा से एक खण्डित शिलालेख मिला है, जो क्षत्रपवंशीय राजा गिरनार तीर्थ 55
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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