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________________ शत्रुंजय गिरि मंडणो, मरुदेवानो नन्द । युगला धर्म निवारणो, नमो युगादि जिणंद ॥ ८ ॥ तन, मन, धन, सुत, वल्लभा, स्वर्गादि सुख भोग । वली वली ए गिरि वंदता, शिवरमणी संयोग । । ९ ।। श्री शत्रुंजय तप की आराधना विधि (१) इस तप के प्रारंभ में १ अट्ठम, पारणा में बियासणा, उसके बाद में एकांतरे छट्ट और अंत में १ अट्ठम करना । (२) दोनों समय प्रतिक्रमण (३) तीन बार देववंदन (४) खमासमणा, स्वस्तिक, काउस्सग्ग वगेरे २१ - २१ करना । (५) (६) अट्ठम छ्ट्ट छट्ठ छट्ठ छट्ठ छट्ठ छ्ट्ट छट्ठ छट्ठ शत्रुञ्जय तीर्थ तप के दिन श्री शत्रुंजय लघु कल्प का वांचन या श्रवण करना । तप के दिन निम्नोक्त २० - २० माला गिननी । १ला श्री पुंडरिक गणधराय नमः १ला श्री ऋषभदेव सर्वज्ञाय नमः १ श्री विमल गणधराय नमः ३रा श्री सिद्धक्षेत्राय नमः ४था श्री हरिगणधराय नमः ५ वाँ श्री बाबुबली नाथाय नमः ६ट्ठा श्री सहस्रादि गणधराय नमः ७वाँ श्री सहस्र कमलाय नमः २रा श्री कोडी गणधराय नमः 47
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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