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________________ (५) हो तो एकासना करना चाहिये, शयन भूमि पर करना चाहिये और पैदल चलकर यात्रा करनी चाहिये। (४) गिरिराज की निन्नाणवे यात्रा करनी, तदुपरान्त घेटी पाग की नौ मिला कर कुल १०८ यात्रा करनी। नवाणुं यात्रा करने वाले को ९ प्रदक्षिणा, ९ खमासमणा, ९ लोगस्स का कायोत्सर्ग करना चाहिए। यथाशक्ति रथयात्रा की शोभायात्रा निकालनी चाहिये, निन्नाणवे प्रकारी पूजा पढ़ानी तथा भगवान की आंगी रचानी चाहिये। (६) नित्य तीन प्रदक्षिणा देनी तथा एक बार आदीश्वर दादा के मन्दिर की १०८ प्रदक्षिणा देनी चाहिये। (७) नित्य नौ स्वस्तिक करें, नौ फल तथा नौ नैवेद्य रखें। (८) 'श्री शत्रुजय महातीर्थ आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं' कहकर नित्य नौ लोगस्स का कायोत्सर्ग करना चाहिये। (९) नित्य यथाशक्ति अष्ट प्रकारी पूजा करें। (१०) एक बार १०८ लोगस्स का कायोत्सर्ग करें। (११) शक्ति हो तो एक बार चौविहार छट्ठ करके सात यात्रा करें। (१२) घेटी पाग, (१३) रोहित शाला पाग तथा (१४) शत्रुजय नदी की पाग से एक बार तो अवश्य यात्रा करें। (१५) बारह कोस, छः कोस एवं डेढ़ कोस की प्रदक्षिणा करें, इस प्रकार कुल मिलाकर १०८ यात्रा करें। (१६) नौ बार नौ ढूंकों के दर्शन करें तथा नौ ढूंकों में प्रत्येक ट्रॅक के मूलनायकजी के समक्ष चैत्यवन्दन करें। शत्रुञ्जय तीर्थ
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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