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________________ प्राणियों को ग्लानि हो गई है। तब विद्याधर बोले, हे चक्रवर्ती राजा! श@जयगिरि पर एक शाश्वत रायण वृक्ष है। वह शाकिनी, भूत तथा दुष्ट देवों द्वारा किए दोष हरने वाला है। उसका प्रभाव श्री युगादीश प्रभु के दास हमने अनेक बार सुना है। उस वृक्ष का तना, मिट्टी, शाखा और पत्ते आदि हमारे पास तैयार हैं। उनके जल का सिंचन करने से आपकी समस्त सेना रोगरहित हो जाएगी। तब चक्रवर्ती की अनुमति से उन विद्याधरों ने तुरन्त ही उस जल से सिंचन किया, जिससे सारी सेना तत्काल निरोगी हो गई। फिर भरत राजा का सन्मान प्राप्त कर, वे दोनों विद्याधर क्षण भर में अपने स्थान को चले गये। अपनी सेना को निरोगी हुआ देख भरतपति को हर्ष हुआ और हर्ष से प्रफुल्लित मन हो वे अपने मस्तक-कमल को घुमाने लगे। फिर वे प्रीति को मानो बाहर प्रकट करते हों वैसे वाणी से अभिव्यक्त करने लगे, 'अहो! इस तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय गिरिवर की महिमा वचन से अगोचर है। तीनों जगत में इस तीर्थ जैसा कोई एक तीर्थ भी ऐसा नहीं है कि जिसके चिंतन मात्र से उभय लोक के सुख प्राप्त होते हों। 14 त्रितीर्थी
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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